Tuesday, February 23, 2010

अपनी विशिष्टता का अहसास करके आत्मबल बढ़ाना होगा---आत्म-निर्भरता की ओर कदम बढ़ाने होंगे---
जब हमारा आत्मबल जाग्रत होता है तो दुनिया की समस्त शक्तियां छोटी पड़ जाती हैं .नारी-शक्ति को स्वयं इसका अहसास कराना होगा.
सदियों से महिलाऐं वैश्विक स्तर में भी समाज में हाशिये पर रही हैं. उनका सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक -भावनात्मक तरीके से मजबूरी व मासूमयित का फायदा उठाये जाता रहा है. उनको आधी दुनिया तो बोला जाता है पर उनको उनके मानव-अधिकारों तक से वंचित रखा जाता रहा है.
पर आज सामाजिक,सांस्कृतिक ,पारिवारिक मूल्यों में निरंतर चेतना बढ़ रही है, परिवेश बदल रहे हैं. वास्तव में समाज में भी कर्तव्यबोध की भावना बढ़ रही है धीरे-धीरे ही सही. पुरुष वर्ग के साथ मुख्यतः अब महिलाओं को भी अपना नजरिया बदलना होगा क्योंकि एक परिवार में वे ही मुख्य धूरी मानी जाती हैं . उनकी खुद की जिंदगी में वे जिस कमी ,भेदभाव,शोषण या ना-इंसाफी का शिकार हुईं हैं ,होती रही हैं . अपनी बेटी - बहू या समाज की हर बच्ची के साथ किसी भी भेद-भाव-भुलावे से मुक्त रखें. विशेष अपने घर में बेटी-बेटे में कोई भेदभाव नहीं करके समान अवसर दें. सही संस्कार व सामाजिक मूल्यों के साथ बचपन से ही बेटी को पूर्ण जागरूक व सशक्त बनाया जाये ना कि प्राकृतिक शारीरिक कमजोरी का अहसास कराके उसका मनोबल कम किया जाये. हर क्षेत्र में जागरूकता की बहुत जरुरत होती है.
अपने परिवार से ही शुरुआत करके व्यापक बदलाव करने होंगे. समाज के हर वर्ग के लिए इस समस्या के निदान ढूंढने होंगे.
वैसे भी सर्व-विदित है कि एक बेटी अपने परिवार से दूसरे परिवार में अपने को आत्मसात करने के बाद भी ( अपनी शादी के बाद) जुडी रहती है पूरा ध्यान रखती है. हाँ हमें अपनी बच्चियों को संपूर्ण सशक्त -सफल -अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की पहल उसके जन्म से ही शुरू करनी होगी. जब तक हम स्वयं अपने घर में से ही हमारी बच्चियों का आत्मबल बढ़ाने का ध्यान नहीं रखेगे तो किसी जादुई चमत्कार की आशा दूसरे से नहीं कर सकते. अभी हमें बहुत कुछ करना बाकी है घरेलू हिंसा के साथ समाज में दिनों-दिन बढ़ते हिंसात्मक व्यवहार से अपनी व अपने परिवार की सुरक्षा किस तरह की जाये इसकी जानकारी हेतु वृहद उपाय किये जाने होंगे. घरेलू+कामकाजी महिलाओं को अपनी भूमिका सक्षम बनानी होगी ,अपनी बच्चियों को अधिक मूलभूत सुविधा दिलवाने के साथ सतत निगरानी के दायित्व भी निभाने होंगे व उन पर विश्वास करके उनके कर्तव्यों से परिचित कराना होगा ताकि वे किसी गलत लालच या मतिभ्रमित होने से बचें. और वे समाज-परिवार व अपनी जिंदगी में सामान्य संतुलन बनाकर निडर होकर अपना जीवन सार्थक सकें. अपनी बात कहने में हिचक महसूस ना करें.
बालिकाओं की प्रगति व उत्थान के लिए आन्दोलन का प्रारंभ नए तरीके से करना है तो बारम्बार अनेकों अत्याचार व दुर्घटनाओं से हम मात्र विचलित होकर नहीं रहेंगे.
श्रंखलाएं हों पगों में,गीत गति में है सृजन का ,
है कहाँ फुर्सत पलक को ,नीर बरसाते नयन का,
उठो आगे बढ़ो ,ये समय है कुछ कर दिखाने का.
जयहिंद-जय महिला-शक्ति.
अलका मधुसूदन पटेल ,लेखिका+साहित्यकार.