Monday, June 8, 2009

· (FOR HEADING OF ALL POSTS )
o *नई किरण की ओर*--------
· नवीन सहस्त्राब्दी की दहलीज पर आधुनिक भारत ने अपने कदम बढा लिए है. . संपूर्ण विश्व में हमारा देश एक अपूर्व शक्ति के साथ बढ़कर हर क्षेत्र में अपनी गौरवमयी उपलब्धियों पर गर्वान्वित है.. हमारे कर्त्तव्य-उत्तरदायित्व बढ़ गए हैं----तो हमारे देश की नारी-शक्ति क्यों पीछे रहे. जरूरत है उनको आगे लाने की,सहेजने की,मिलकर कदम बढ़ाने की,उनकी योग्यता परखकर उत्साहित करने की,उनका आत्मविश्वास बढ़ाने की. .हमें विश्वास है आपकी संवेदनशीलता पर ,मानवीय मूल्यों पर. . स्त्री-मुक्ति-मानवमुक्ति के संघर्ष में हम-आप साथ चलें......*और एक नए समाज का निर्माण करें*.

o *श्रीमती अलका मधुसूदन पटेल* *स्वतंत्र लेखिका – साहित्यकार*
· सारांश----साहित्यिक जीवन परिचय
· स्वतंत्र लेखन - सामाजिक सेवा - अध्यापन ,पूर्व शिक्षिका - कोचिंग इंस्टिट्यूट .
· जन्म स्थान-सागर , वर्तमान आगरा , पति डॉ.एम.एस.पटेल ,राजकीय स्वास्थ्य सेवा उ.प्र.
· शिक्षा-स्कूलिंग- नेपानगर , स्नातकोत्तर "एम.एस सी. जीव शास्त्र" जबलपुर
· लेखकीय परिचय-1संपादन मासिकपत्रिका*पारमिता*-*2आर्टक्लब*संस्थापिका,साहित्य व विशेषविधा, झाँसी.
· नियमित लेखन - हिंदी व अंग्रेजी में .
· प्रकाशन प्रादेशिक, राष्ट्रीय स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं व अंतर्जाल पत्रिकाओं में..
· लगभग १५० कहानी ,लेख ,गीत ,परिचर्चा प्रकाशित-प्रकाशनाधीन.
· नियमित आकाशवाणी प्रसारण २५-३० झाँसी, छतरपुर - सी केबल टी. वी. ९-१०आगरा.
· प्रकाशित पुस्तकें- कहानी संग्रहों की.
· MEMBER OF INDIAN WRITERS CLUB
· INDIA INTER CONTINENTAL CULTURAL ASSOCIATION
· १.*लौट आओ तुम*-------२१ कथा संग्रह १९९८
· २. *मंजिलें अभी और हैं* - १८ कथा संग्रह २००३
· ३. प्रकाशनाधीन-१. ईश्वर का तो वरदान है बेटी २. १००१ हस्त शिल्प कला
· पुरस्कार--------लेखन - सामाजिक कार्यों
· अखिल भारतीय लेखन - *कहानी प्रतियोगिता* दिल्ली प्रेस पत्रिका.
· १.कहानी *बंद लिफाफों का रहस्य* पुरस्कृत २००१ में .प्रकाशन "गृह शोभा" २००२ .
· २.कहानी *दूध के दांत* पुरस्कृत २००३ में .प्रकाशन “सरिता” २००४ .
· पुरस्कृत - तत्कालीन राज्यपाल उ.प्र. महामहिम स्व. विष्णुकान्तजी शास्त्री द्वारा.
· ३. सरदार पटेल महिला कल्याण समिति-सामाजिक कार्यों ,नामांकन रोटरी क्लब द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर..
· ४. अन्य अनेकों संस्थाओं व स्थानीय प्रशासन-लेखन निबंध सामाजिक व लायंस क्लब्स पुरस्कार.
· ५.Police Services are Challenge for Public Expectations-
· awarded essay by S.S.P.Office Jhansi
· blog *gyaana*
· श्रीमती अलका मधुसूदन पटेल
· ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

·
· 1 . क्या है *घरेलू हिंसा-डोमेस्टिक वायोलेंस. ?*
· परिवार में जब किसी बालिका ,महिला,पुरुष या घर के "किसी भी उम्र" के किसी सदस्य के साथ घर के ही लोग हिंसा का या असामान्य ,गलत व्यवहार ,मारपीटकरना,डराना,धमकाना, छीना झपटी हत्या आदि अमानवीय बर्ताव करते हैं.तो उसे *घरेलू हिंसा* या *डोमेस्टिक वायोलेंस* कहते हैं .नैसर्गिक कोमल शारीरिक प्रकृति व स्वरुप होने के कारण ज्यादातर लड़कियों व महिलाओं के जीवन के हर पहलू में किसी न किसी प्रकार की हिंसा होती ही रहती है. यह हिंसा बलप्रयोग ,शारीरिक ,लैंगिक,यौन हिंसा , भावनात्मक ,मनोवैज्ञानिक आदि सभी रूप से विद्यमान हैं. हिंसा का डर,भय, खौफ औरत की मजबूरी बन जाता है. व पुरुष वर्ग व बलशाली लोगों का नियंत्रण उसपर बना रहता है. उसका "लड़की" के रूप में पैदा होना ही उसको हिंसा का शिकार बना देता है. कोख में बच्ची को मार देना या फिर पैदा होने के बाद उसे ठीक से खाना ना देना ,डॉक्टर द्वारा सही इलाज ना करना ,अच्छे स्कूल में ना पढाना व उच्च शिक्षित ना कराना,कम उम्र में ही शादी कर देना. नकारात्मक सहयोग ,पुत्र-पुत्री के बीच असमानता-भेदभाव का बर्ताव, आर्थिक निर्भरता का ये पारिवारिक व सामाजिक भेदभाव बचपन से लड़की के मन में हीन भाव भर देता है,उसको पनपने नहीं देता.बचपन से उसके उठने ,बैठने ,आने-जाने पर लगाई गई रोक उसे मानसिक कमजोर बना देते हैं.ये सीमाएं शादी के बाद भी परम्पराओं व रीति -रिवाजों की आड़ में बंधन के रूप में उसको जकड कर रखते हैं. इस सब के साथ शारीरिक स्वरुप में कोमल होने के कारण आदमी या घर के लोग उसपर हावी हो जाते हैं व उसपर घरेलू हिंसा करने लगते हैं. पति या उसके परिवारजन उसके साथ दुर्व्यवहार ,दुर्भावना,मारपीट,गली-गलौज,मानसिक शारीरिक प्रताड़ना ,यौन हिंसा अदि होती है.अक्सर भारतीय समाज ने औरतों की पवित्रता को घर समाज जाति की प्रतिष्टा का मोहरा बना लिया है. *उचित संरक्षण* सही है वह सम्मान के साथ चाहती भी है पर अनावश्यक परतंत्रता नहीं ,उसका हक़,उसके अवसर न छीने जाये. पुत्र की तरह उसका भी संपूर्ण मानसिक विकास+शिक्षा होना जरुरी है.
· "आश्चर्यजनक रूप से घरेलूहिंसा में पारिवारिक महिलाओं की ही महिलाओं के प्रति भागीदारी बराबर है."
· पहिले अपने जन्म लिए घर में व ब्याह के बाद पति के घर में भी अक्सर घरेलू हिंसा द्रष्टिगत होती है.
· विशेष------*सामाजिक हिंसा* में भी औरतों या बालिकाओं के साथ असामान्य व्यवहार ,बलात्कार,जबरदस्ती यौनिक छेड़ छाड व बल हिंसा देखने को मिल जाती है. यां उत्पीडन का मतलब है किसी भी औरत को बुरी नजर से घूरना,सीटी बजाना ,गंदे गाना,भद्दी अश्लील बातें, मजाक या जानबूझकर शारीरिक संपर्क की चेष्टा.महिलाओं के लिए आपत्तिजनक कहना ही नहीं गलत शब्दों में लिखना तक हिंसा कहलाता है.
§ *अलका मधुसूदन पटेल*
· 2. *बालिकाओं व महिलाओं के विरुद्ध भेद भाव *
· बच्चियों व स्त्रियों के साथ पैदा होने से वृद्धा होने तक निरंतर दुर्व्यवहार इसीलिए होता है की उसने लड़की के रूप में जन्म लिया है. *वीकर सेक्स* या *कमजोर* कहकर उसका उपहास या निम्न श्रेणी का बर्ताव होता आया है. भारतवर्ष ही नहीं संपूर्ण विश्व में *मानव अधिकारों का हनन* का इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं है. इक्कीसवीं शताब्दी में कदम रखने के बाद भी समाज की अधिकतर संस्कृतियाँ ,जातियां,अधिकांश देशों की सभ्यता में नारी शक्ति के साथ असमानता का व्यवहार होता है..शैक्षिक स्तर,आर्थिक निर्भरता,,अल्प राजनीतिक अधिकार ,बच्चों को जन्म देने का निर्णय ,उसकी स्वतंत्रता का सदा उसपर अभाव समान रूप से बना रहता है. पारिवारिक ,सामाजिक व कानून सम्बन्धी असमानता उस पर थोपी जाती है. उसको जकड कर रखा जाता है. यह भी एक प्रकार की भेद भाव की भावनात्मक हिंसा या असमानता है जो उसको बेडी में बांध कर रखती है."महिला पर महिला द्वारा हिंसा का सब जगह उल्लेख करना आवश्यक है क्योंकि ये भेदभाव घर में ही ज्यादा होते हैं ."
· विशेष-----बालिकाओं व महिलाओं के विरुद्ध उनके घर से ही भेद ,असमानता व हिंसा किसी भी रूप में प्रारम्भ हो जाती है ,पर इसे व्यक्तिगत तौर पर या सजा - दंड देकर कदापि नहीं रोका जा सकता. समाज में व्याप्त धारणाओं ,विचारों को बदलकर ही इस समस्या को दूर किया जा सकता है. समाज में जनता को जागरूक करने के लिए एक मुहिम छेड़नी पड़ेगी ,जंग लड़नी पड़ेगी. पूर्वाग्रहों व अंधविश्वासों की ,झूठी परम्पराओं की जड़ें इतनी गहरी बैठ गई हैं कि अनजाने में ही महिलाओं को पुरुष से नीचा समझा जाने लगा है.स्वयं औरत ने ही अपने आप को छोटा मान लिया है. क्योंकि वह जानती है कि शारीरिक स्वरुप में वो कमजोर है व उसपर संसार का सबसे बड़ा भार संतति का है पर ये तो प्रकृति का वरदान है कोई अभिशाप नहीं. और उसकी शारीरिक कमजोरी के कारण ही उसे हर उम्र में सदैव अपने "पिता,पति, पुत्र, सही मित्र" के रूप में संरक्षक की आवश्यकता होती है. जिन पर वह सदैव गर्व भी करती है .पर अनुचित बल प्रयोग न करके उसे मानसिक रूप से स्वतंत्र कर आगे बढने देने का पूरा हक़ मिलना चाहिए .उसमे पूरी योग्यता है यह उसको जानना होगा. अगर सही मौका मिले तो. कोई कन्या या महिला जब समाज में अपना एक ऊँचा स्थान बना लेगी तब उसके साथ होने वाला हिंसात्मक रवैया एक चौकानेवाला हादसा बन जायेगा. वर्तमान में नवीन पढ़ी लिखी युवा पीढी में नई चेतना व जागरूकता के द्वारा बदलाव की बयार लाई जा सकती है.संपूर्ण चैतन्यता लाने के लिए उनको उनके मौलिक व बुनियादी अधिकारों की जानकारी देकर जाग्रत करना होगा विचारों में बदलाव लाकर नई अलख जगाकर सामूहिक प्रयास करना होगा .
· ये प्रश्न ज्यादा *महत्वपूर्ण-ज्वलंत* इसीलिए भी हो जाता है कि बचपन से हर जगह अपने विरुद्ध लगातार हिंसा देखकर नवयुवा लड़की विशेषकर "नवयुवती कही अधिक विद्रोही बनती जाती है. अपना अच्छा बुरा न सोचकर "गलत राह अपनाने को बढने लगी है" ये परिवार व समाज के लिए बहुत चिंता की बात है.
· "अतः सही मार्गदर्शन होने से व घरेलू हिंसा में रोक व पारिवारिक भेद भाव मिटाने के साथ परिवारों में उसके साथ सही व्यवहार+ सम्मान किया जाये. "नारी शक्ति के बिना तो संसार चक्र ही नहीं चल सकता और उसी के साथ ये नकारात्मक व्यवहार." सशक्त समाज का निर्माण हम सब को ही करना होगा जहाँ कोई भेद भाव न हो. यही आज की सबसे बड़ी जरूरत है. जिसमे सब एक दूसरे का पूरा उचित मान सम्मान देकर अपने अधिकारों की रक्षा करें न ही अपने पथ से भटक कर दिशाहीन हों . *अलका मधुसूदन पटेल*


· 3 ..................*गंभीर चिंतन*...................
· आवश्यकता है जागरूक व सावधान समाज प्रहरियों की .चुनौती है स्वदेशवासियों को.
· हमारे देश की आज़ादी के पचास वर्षों के बाद भी इस वैज्ञानिक व आधुनिक युग में नारी की ये अमानवीय स्थिति जो सामान्यतः द्रष्टिगत नहीं होती .कई जगह आज भी मौजूद है. इन परिस्थितियों को दूर करने के उपाय ढूँढना है.सदियों से चली आ रही रुढियों व पुरानी सोच को बदलना है. दिशा व दशा को परिवर्तित करनी है
· स्वास्थ्य विभाग के (पूर्व)सर्वेक्षण की जानकारी से उपलब्ध आंकड़े संक्षिप्त में प्रस्तुत हैं.
· क्या यह आप जानते हैं........(जबकि यह सब कानूनन अपराध है. )
· १ भ्रूण व शिशु हत्या ,भारत में प्रत्येक वर्ष ३० से ५० लाख शिशु कन्या भ्रूण नष्ट किये जाते हैं .
· २. प्रत्येक वर्ष जन्म लेते ही १०,००० कन्या शिशुओं को मार डाला जाता है. आधुनिक समाज में भी अलग-अलग प्रान्तों में इस असंवेदनशील कृत्य की सूरत अलग अलग है.कही कम कहीं ज्यादा.
· ३.कई जगहों पर कन्या को जन्म नहीं लेने दिया जाता. कई जगहों पर कन्या के पैदा होने के बाद उससे भेदभाव करके माँ का दूध व पर्याप्त पोष्टिक भोजन नहीं दिया जाता इससे कुपोषण होने से वो कभी कमजोर तो कभी उसकी म्रत्यु हो जाती है. घर की महिलाओं का ही अपनी बेटी से असमानता व दुर्व्यवहार होता है.
· इस तरह के अनेक कारणों से भारत की जनसँख्या में ५ करोड़ महिलाऐं कम हो चुकीं हैं.
· पुरुष-स्त्री का अनुपात १०००/ ८७२ से ९०० तक आगया है. जिसमे अभी भी सुधार नहीं है.
· ४. मनोचिकित्सक सुधीर कक्कड़ के अनुसार ६००,००० से ७००,००० भारतीय बच्चे यौन हिंसा के शिकार बन जाते हैं. अधिकांशतः परिवार के अंदर ये अपराध होता है जो द्रष्टिगत नहीं होता.
· ५. प्रत्येक दर्ज एक अपराध के पीछे १०० बिना दर्ज किये अपराध रहते हैं.पिछले १० वर्षों में १० वर्ष से कम आयु की बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटना में २७% की वृद्धी हुई है. ६५% घरेलू अपराध के मुक़दमे पुलिस में दर्ज होते हैं. घरों में होने वाले अपराध ज्यादा होता हैं आश्चर्य जनक रूप से महिलाओं की भागीदारी सामान होती है.
· ६.बंगलोर,मुंबई,चेन्नई,हैदराबाद,दिल्ली,कलकत्ता में ७०,००० से १००,००० के करीब वैश्याएँ थीं. जिनमे १५% जबरदस्ती बनाईं गई लड़कियों की संख्या थी. प्रतिवर्ष किसी भी रूप में २० से २३ लाख औरतों की खरीद-फरोख होती है.२५% बच्चियां होती हैं .
· ७. ग्रामीण क्षेत्रों में ४०% लड़कियों का विवाह १५-१६ वर्ष से कम आयु में हो जाता है.राजस्थान में ५६% का १५ वर्ष से कम,१४% का १० वर्ष से कम व ३% का ५ वर्ष से कम होता है. प्रान्तों के अनुसार आंकडा अलग है.
· अधिकांशतः किशोरवय की बालिका प्रथम संतान की माँ बन जातीं हैं. कम आयु में माँ बनने व जानकारी के अभाव में माँ की म्रत्युदर ज्यादा है. भारत में १००,००० में से जन्म लेने वाले बच्चों ४५० की माँ म्रत्यु दर है.
· बच्चों व माँ की इस दर की गिनती पक्की नहीं है.
· ८.७०% महिलाऐं पति व उसके परिवारवालों की हिंसा की शिकार .प्रतिवर्ष १५००० महिलाऐं दहेज़ हत्या की शिकार.
· ९ .गर्भवती महिला के साथ मारपीट ,विधवाओं के साथ दुर्व्यवहार ,संपत्ति के लिए हत्या.प्रतिवर्ष लगभग १५००० विधवाएं परिजनों द्वारा निराश्रित ,असुरक्षित,आश्रमों में यौन हिंसा की शिकार.
· १०.हर ३४ मिनिट में एक महिला बलात्कार की शिकार,हर २६ मिनिट में एक महिला छेडछाड़ की शिकार. प्रस्तुति *श्रीमती अलका मधुसूदन पटेल*
· ४. *स्वनिर्माण चेतना एवं जागरूकता-------बालिका के हितों की रक्षा*
· स्वप्न भारत की प्रगति का बालिका कर पायेगी , सृजन सेवा संगठन अब महिला कर जायेगी.. . प्रगति की निर्मल पताका शक्ति संचित भोर का, सूर्य ऊंचाइयों का बनाकर रोशनी वही फैलाएगी ..
· ईश्वर की सर्वश्रेष्ट कृति मानव ,मानव में श्रेष्ट स्त्री ,सारी दुनिया की सृजक, पालक, कला, संस्कृति, सर्वगुणा शक्तिमान ,समरूपा, ममतामयी और न जाने कितनी उपाधियों से परिपूर्ण है नारी शक्ति. नई दुनिया की स्रष्टिकर्ता आज सिर्फ संघर्ष का पर्याय बनकर क्यों रह गई है..आज जरूरत है बालिका-महिला को अपने को पहचानने की. स्वयं अपने नवनिर्माण हेतु चैतन्य होने की. अपने में आत्म-विश्वास, संपूर्ण आस्था जगाने की. अपने समुचित विकास एवं अधिकारों के लिए उसे सम्पूर्णता से अपने जनतांत्रिक देश में आवाज ही नहीं देना है सक्षम बनकर सही राह चुनना है. नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ना है धरती पर कदम जमाकर अपने आकाश को पाना है.. नित्य नवीन चुनौतियाँ ,भीषण समस्याएँ, स्वयं अपने परिवार, समाज की विसंगतियां ,नित नई कठिनाइयाँ ,प्रतिकूल बाधाए-अवरोध ,परिस्थितिवश अनावश्यक अनवरत शारीरिक-मानसिक शोषण-दोहन-तनाव उसके सामने हैं. पल-पल अन्धविश्वास,कुप्रथाएँ,अशिक्षा,अत्याचार जन्म से मृत्यु तक उसको चुनौती दे रहे हैं.. आधुनिकता के आवरण में भी उसको अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं .. इन सबसे जूझती *नारी* को अपने लिए सोचने-जाग्रत होने का समय कहाँ रह गया है पर--कवि का कथन है..
· संघर्ष तो करना होगा,जूझना होगा,ज्योतिर्मय संसार बनाना होगा.. नहीं है कोई उपाय ,संघर्षों-कष्टों से बचने का,सत्य से हटने का.
· सही के लिए तो अब आगे बढना होगा अंतिम स्वास तक मिटना होगा.यह नियति नहीं प्रगति है नवीन पथ की परिणति है.
· वर्जनाएं सदा रोकेंगी तुम्हारा पथ ,अवरुद्ध करेंगी तुम्हारा रथ.तुम ठहरना मत,घबराना मत,बढते जाना लड़ते जाना हर बाधा से, प्रतिबाधा से . जीवन बनेगा संघर्ष तभी होगा तुम्हारा उत्कर्ष.
· बंधी-बंधाई लीक से हटकर कुछ अलग सोचो ,बदलो. समझना होगा कि कोई चमत्कार नहीं होनेवाला, संवेदनाओं या सहानुभूतियों का ज्वार नहीं आनेवाला, स्वयं प्रबुद्ध बनकर आत्म-संयमित होकर समाज के दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब निहारकर नारी अधिकारिक चेतना जगानी होगी. छोटे-छोटे प्रयत्नों से बड़े-बड़े काम होते हैं. अपनी *संस्कृति-संस्कारों* को धरोहर मानकर समस्त *मिथ्या आवरणों* को दूर करके अपने अस्तित्व की लडाई खुद लड़नी होगी. शोषण, उत्पीडन, हिंसा से अपनी रक्षा के कदम बढाने होंगे. सामुदायिक जीवन में मिलकर आवाज उठाने से आत्मबल बढ़ने के साथ जनबल भी मजबूत होता है.. न केवल परिजन,समाज के बुद्धिजीवी भी आगे सहायतार्थ एकत्रित होते जाते हैं.. महिलाओं के अंतःकरण की सच्ची सोच उसके आत्मविश्वास के साथ समाज को सद्-प्रेरणा देते हैं.सामाजिक सुरक्षा मिलने से उसकी भावनाएँ ,आकान्शाएँ कुचल नहीं पाएँगी, उसे नहीं कहना पड़ेगा.(भ्रूण हत्या पर रोक हेतु)
· शक्तिदायिनी - शक्तिरूपिणी शक्ति मांग रही है, जीवन देने वाली जननी जीवन मांग रही है.. . कल्याणी दुःख-हारिणी तारिणी जग हननी क्यों है ? जग जननी,जग सृजनकारिणी दुःखदायिनी क्यों है?
· *विशेष*-नए भविष्य की सिर्फ कल्पना करने या बातें करने से कुछ नहीं होगा .इस कठोरतम यज्ञ को संकल्पित करने हेतु समग्र परिवार ,समाज,व देश के प्रबुद्ध नागरिकों को आगे आना होगा. शुरुआत भी अपने घर से, अपने परिवार से हर स्त्री - पुरुष को करना होगा.स्त्री शक्ति का सही मूल्यांकन करना होगा.. सोचना होगा बालिका के हितों की रक्षा खुद अपनी रक्षा है.
· *अलका मधुसूदन पटेल*
· 5 *परिवार व समाज की सशक्त भूमिका व प्रयास *(AWARENESS)-*स्नेहिल आव्हान है बिटिया का*.
· बालिका के प्रति समाज में रहने वाला हर व्यक्ति *स्त्री हो या पुरुष* अगर अपनी सोच और मानसिकता में थोडा भी परिवर्तन ले आये तो अपने आप जन-मन का रुख बदल जायेगा वह स्वतः नवनिर्माण की ओर बढेगी. आप अपने -लाड-दुलार-प्यार-पालन-पोषण में कोई कमी नहीं करते तो उसके भविष्य उज्जवलता में भी सहायक बनें.
· १ जिम्मेदार नागरिक व विकास प्रेरक के रूप में लिंग निर्धारण - भ्रूण हत्या के अपराध में न तो शामिल हों, न होने दें. अपने आस-पास के लोगों को भी रोकें. वर्त्तमान की असंतुलन की ओर बढती परिस्थिति सबके समक्ष है.. लड़कियों की कमी से क्या हमारे बेटों के ब्याह संभव होंगे ,स्रष्टि का संतुलन बना रहेगा.महिलाऐं अपनी बेटी को जन्म अवश्य लेने दें.
· माँ तेरे हाथों मेरा जीवन ,दे प्राणों का दान ,शिक्षारूपी पंख लगा दे भरूं गगन में उडान .
· चहक-चहक कर उडूं गगन में चाँद सितारे लाऊ उजियारी फैलाउंगी *माँ मत ले मेरे प्राण*.
· २ हमारे परिवार समाज में लड़के व लड़कियों में कोई भेद भाव न करें ,उनके अधिकारों से उनको वंचित न करें.. पुत्र के बराबर पुत्री भी माँ-पिता के साथ उनकी देखभाल-संभाल को हर क्षण तैयार है.समाज में आप देख रहे हैं.
· आपकी सर्वगुण सम्पन्न बेटी के लिए उसकी योग्यता ही उज्जवलता है ,जहाँ बिना किसी खर्च(तात्पर्य दहेज़ से है) के लोग उसे अपने परिवार की बहू बनाने में गौरवान्वित होंगे, स्वयं हाथ मांगने आयेंगे..
· ३. बालिका की किसी भी सामाजिक या घरेलू समस्या या जरुरत के प्रति उदासीन न रहें ,आंखें बंद न करें. पुत्र की तुलना में पुत्री को जनम देने में,बड़ा करने में *क्या आपने उतने ही कष्ट नहीं उठाये* फिर ये भेद क्यों?.
· ४.क्या केवल कानून बनाकर हम बाहरी व घरेलू हिंसा, असमानता या बलात्कार- दुर्व्यवहार आदि को रोक सकते हैं. बच्चियों को समुचित जानकारी व सावधान करने की जरूरत है ताकि वे दिग्भ्रमित न हों ,आपसे खुलकर बात कर सकें. आप के संपूर्ण स्नेह-विश्वास सहारे की जरुरत है उनको. .
· ५. शिक्षा के स्तर में शीघ्र व पूरी जागरूकता हो. उनकी रूचि के अनुसार उनको समुचित मौका दें. अनेकों उदा.सामने हैं पुत्रियों ने अपना जीवन अपने माँ-पिता-परिवार हेतु अर्पित किया है. अपनी शादी तक नहीं होने दी. ६.प्रशासन व सरकार द्वारा दी गई आर्थिक-शैक्षिक-आरक्षित सहायता ,मानसिक व शारीरिक विकास हेतु दी गई सुविधाओं की पर्याप्त जानकारी व संपूर्ण अवसर दें.
· दिल के ख्यालों में अब तेरी ही रोशनी है, अँधेरी जिंदगी से दूर ये सच्चाई की रोशनी है..
· रोशनी के ये दायरे कभी ज्ञान ,कभी ख़ुशी, कभी ज्योति बांटे, हम तुम्हारी ही अपनी हैं..
· ७. सामाजिक सस्थाएं अपने स्तर से नुक्कड़ नाटक,गीत,परिचर्चा,सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रदर्शनी गोष्टी आदि से जागरूक करने हेतु आगे आयें. सबसे बड़ा दायित्व इन्ही का है अपनी धरोहर की उन्नति के प्रयास का.. ८. मीडिया ,रेडियो, टेलिविज़न ,सिनेमा, इन्टरनेट आदि का भी समाज पर ,जनता पर बहुत व्यापक व त्वरित प्रभाव होता है इनको भी अपनी भूमिका सशक्त करनी होगी. क्योंकि इनकी आवाज समाज के हर परिक्षेत्र में पहुचती है.. ९ .बच्चियों-महिलाओंपर सदा अपना फैसला न थोपें. आर्थिक स्तर के लिए सही शिक्षा से आत्मनिर्भर ,स्वावलंबी बनाने को सदैव प्राथमिकता दें. उसकी योग्यता पर आपको गर्व होगा. पहिले वो आपकी सेवा को ही तत्पर होगी. समुचित लालन-पालन ,चिकित्सा,सही जीवन निर्धारित करने से वो स्वस्थ-सशक्त होगी.संघर्षों से जूझने को तत्पर.. १० हमारे स्नेही युवाओं को भी आगे आना होगा और भावी असंतुलन की ओर जाती *उनकी पीढी* की रक्षा उनको तत्परता से करनी होगी ,समाज की दूषित बुराइयों को वे अपनी योग्यता-सक्षमता-सूझ-बूझ से दूर कर सकते हैं. .
· ११. हम अपनी बेटी,बहन,माँ व घर की हर महिला का सम्मान करेंगे तो किसी और की कोई हिम्मत ही नहीं होगी कि कोई आँख उठाकर भी देख सके. सामाजिक चैतन्यता आने से हम यूँ विचलित नहीं होंगे. इन परिस्थितियों को बदलना ही होगा. *हमारी बेटियों के लिए हमें ये जंग सामूहिक लड़नी ही है*..
· नाम सरस्वती दिया, जिसे वो कन्या पढ़ न पाई, लक्ष्मी धू-धू जली ,दहेज़ के दानव से लड़ न पाई. . अन्नपूर्णा मांग रही , दो दाने भीख में दे दो. सीता चीख रही इस जग में इज्ज़त मुझको बख्शो.
· विशेष ----हमारे समाज के उन क्षेत्रों में ज्यादा ध्यान देने व अपनी आवाज पहुँचाने की जरूरत होगी जहाँ उपरोक्त सुविधाएँ व संसाधन उपलब्ध नहीं हैं .ग्रामीण क्षेत्र, पिछडे इलाके, मजदूर वर्ग के बीच जाकर जागरूकता लानी होगी.
· *WE SHOULD LIGHT A LAMP IN EACH DARK PLACE OF SOCIETY*
· *अलका मधुसूदन पटेल *-* gyaana blog*

· ६ * सामाजिक बदलाव की बयार*---*महिलाओं की आगे कदम----- बढाती दुनिया*
· “छोटे-छोटे प्रयास भी रंग ला रहे हैं धीरे धीरे ही सही, जानते हैं हम.”'
· LITTLE DROPS OF WATER ,LITTLE GRAINS OF SAND.
· CAN MAKE THE MIGHTY OCEAN & THE PLEASANT LAND;
· भारतवर्ष में कई भाषाएँ जाति धर्मं हैं पर निःसंदेह महिलाओं के प्रति सभी जगह सामाजिक परिक्षेत्रों में बहुत अधिक बदलाव दिखता है,सामाजिक सरोकार बदल गए हैं. उनके प्रति सामाजिक द्रष्टिकोण में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है उनके प्रति नजरिया बदल रहा है.परिवारों में पुत्र-पुत्री में भेद-भाव नहीं के बराबर हैं. समान अवसर,प्यार,सम्मान भी मिल रहे हैं. पहिले जहाँ उनका घर से बाहर निकलना ही अच्छा नहीं माना जाता था ,शिक्षा के लिए संसाधन व क्षेत्र बहुत कम उपलब्ध होते थे. वर्त्तमान में अधिकांश शिक्षा संस्थाएं महिला शक्ति को आगे बढने को प्रेरित व आमंत्रित करती हैं. आज उच्च शिक्षिता का समाज में दबदबा है.स्वावलंबी महिलाओं को परिवार के साथ समाज में भी इज्ज़त से देखा जाता है.आज की नारी अपनी बात गर्व से कहने का साहस कर सकती है. पुरुष वर्ग के साथ कंधे मिलाकर चल रही है उनके समकक्ष अधिकार प्राप्त कर रही है अपना फैसला ,इच्छा व महत्वाकांक्षा कहीं ज्यादा आत्मविश्वास व बेबाकी से पेश कर रही है.पारिवारिक उत्पीडन या सामाजिक अन्याय के विरुद्ध उठ खडी हुई है..
· एक टहनी एक पतवार बनती है ,एक कोयला एक अंगार बनती है..
· मारते हैं एक ठोकर एक रोड़ा समझकर,वही मिटटी एक मीनार बनती है. ..
· स्वयं का मामला हो या परिवार का ,मूक तमाशबीन न रहकर निर्णायक भूमिका निभा रही है. आर्थिक आत्म-निर्भरता बढने से उनमे आत्म-विश्वास .अधिकारों के प्रति जागरूक-सचेत. यही नहीं पुरुष-पित्रसत्ता प्रधान भारतीय समाज की परम्पराओं-अंध-विश्वासों-रूढिगत विचारों का विरोध जता रहीं हैं.व्यक्तित्व विकास की और अग्रसर हैं.सिर्फ कामकाजी ही नहीं,घरेलू ,ग्रामीण महिलाऐं भी मुखर हो चलीं हैं.
· पर कहीं विद्रोह भी पनप रहा है क्योंकि नए दौर के इस युग में भी महिलाओं को बहुत मानसिक दबाव सहना पड़ रहा है. पुरुष वर्ग के साथ घर की महिलाओं को भी महिलाओं के प्रति अपनी अपने प्राचीन नजरिये में बदलाव लाना होगा. उन पर वर्चस्व स्थापित करने के बदले उनका पूरक बनना होगा तो समाज की बेहतरी हो सकती है.
· *नए ज़माने के ऐ दोस्त, हौसला रख ,दिशाओं का रुख बदल दे.*
· *भटकाव से बचाव व सावधानियां*
· आज की नारी आधुनिकता व पाश्चात्यता की अंधी दौड़ में ,आर्थिक स्वतंत्रता व सुविधाओं की मदहोशी में गुमराह भी होती जाती है. साजिशों को समझना नहीं चाहती.मतलबी-स्वार्थी होकर अपने भी उसके लिए पराये होते जाते हैं. परिवारों का संरक्षण ,स्नेहिल वातावरण को नकार के एकल परिवार का स्वातंत्र्य जीवन रास आ रहा है. चाटुकारिता ,भेद,रंजिशें, घमंड, विद्रोह,उद्दंडता,अनुशासनहीनता आदि बुरी आदतें भी अपना रही है. अपनी संस्कृति ,अस्मिता और गौरवमयी मर्यादा को भूलने में गर्व महसूस कर रही है.
· कृत्रिम फेशन के लिए अपनी लाज-शर्म को दांव पर लगाने से उसे परहेज करना ही होगा. गलत धारणा बदलनी होगी की अमर्यादित कपडे पहनने से या अति-आधुनिका बनने से उन्नति जल्दी होगी.
· छलावे से बचकर अपनी शील मर्यादा बनाये रखने से स्वाभाविक अपराध कम होंगे.
· नारी शक्ति *अँधेरे के मार्ग में न भटककर "उजाले के स्वागत" में पंख लगाकर उड़ना है. विश्वास करे सामाजिक क्रांति आने के साथ उसके बदलाव को स्वतः नई दिशा ,खुले मन व वरद हस्त से मिलेगी.
· वरिष्ट कवियत्री ने कहा है --,
· पाश्चात्य विचार की नयी सदी ,शताब्दी है
· नई -नई आशाएं हैं ,कई -कई अपेक्षाएं हैं
· हमें अपनी जमीन पर आस्था विश्वास बना रहे
· वृद्ध चरणों में नत होने का गौरव बोध बना रहे .
· दायित्व भी हैं ,धरोहर भी, सौहाद्र भी हैं ,संस्कार भी, .
· करना होगा हमें इनसे भी प्यार, अपनी जमीन पर ही रहकर,.
· हमारे घर परिवार का भी,और बुजुर्गों का पूरा सत्कार .

· *अलका मधुसूदन पटेल *-* gyaana ब्लॉग*7
· *हमारे संकल्प ही सुनहरे नए कल का आधार हैं *……………………
· *न चाँद तारे तोड़ने की चाहत है हमारी,न आसमां को अपनी मुट्ठी में समेटने की हसरत.. . एक इन्सां बनकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश, मुकम्मल बनाना है अरमान की ताकत .
· भारतीय महिलाओं ने अंतरिक्ष की उंचाईयों को छू लिया है. जमीं के हर क्षेत्र में अपने परचम लहरा दिए हैं.अपने देश सहित सारा विश्व चमत्कृत है. शिक्षा विज्ञान ,चिकित्सा, इंजिनियर ,टेक्निकली बड़े बड़े उद्योग-बिसिनेस वुमन, आर्टिस्ट, साहित्य,लेखक ,सरकारी- गैर सरकारी अधिकारी,आर्थिक,सामाजिक,राजनितिक,ग्राम-शहर कही भी-कोई भी क्षेत्र उनसे अछूता नहीं है. विचारणीय है कि इनकी संख्या इतनी कम क्यों है ? आबादी में महिलाओं का हिस्सा आधा माना जाता है फिर ये मुट्ठी भर क्यों ? अंतर्तम से पूछिये ,क्या आप को नहीं लगता की आप या हमारे परिवार की बालिका-महिला भी ऐसी बुलंदियों को छुए… सोचना है हम कैसे अपनी उन बहिनों के अधिकार दिलवा पाएंगे जो इतनी घुटन में रहती है कि उनको तो खुली हवा में साँस लेना भी मुश्किल है. . जन धारणा है कि बालिकाएं या महिलाऐं खुद अपनी लडाई लड़ें पर कैसे ? अपने ही लोगो से वे कैसे विद्रोह करें.अपने सन्सकारों से वे सुसंस्कृत हैं, क्या उनके अधिकार ,कानूनी संरक्षण,उनके लिए मिलने वाली सुविधाएँ सब तरह की जानकारी उन तक पहुचने का बीडा समाज के हर पुरुष-महिला-युवा-बच्चों का नहीं है. . साथ ही जो आगे बढ़कर अपनी मंजिलें पा चुकीं हैं. उनकी जिम्मेदारी अब और बढ़ गई है. क्योंकि वे जानती हैं कि उन्होंने * घुटन से अपनी आज़ादी खुद कैसे अर्जित की है*. सशक्त सहभागिनी बनकर सबसे पहिले सहयोग की पहल करना है उनको.अपने *परिवार*-*पास पड़ोस*-*समाज* में आज से ही शुरुआत करनी है. . समाज के एक व्यक्ति,परिवार'जाति;धर्म, वर्ग की बात नहीं पूरे भारत के कोने-कोने में अलख जगानी है.--.
· *तकदीर संवरती है उनकी जो खुद को संवारा करते हैं ,तूफां में जब हो किश्ती तो, साहिल भी किनारा करते हैं.*
· हम जानते हैं कि महिलाओं को *अधिकार* मिलने के बाद भी उनका पालन नहीं होता. . उसी तरह हर *कानून* उपलब्ध होने पर भी क्रियान्वन नहीं होता.. वास्तव में *नारी* को *सामाजिक बुराइयों* के विरुद्ध स्वयं "अपने व अपने लोगों" से सम्मानपूर्वक अपनी लडाई लड़नी है. समाज में लोगो की मानसिकता में भी बदलाव आया है पर सही जानकारी के अभाव में उनकी इच्छा व आशा पूरी नहीं हो पाती. परिजन व महिला स्वयं अभी भी *नैतिक मूल्यों* के विरोध में अपने ही लोगो के विरुद्ध पूरी तरह आवाज नहीं उठा पाते. अपनी पहचान बनाने के लिए महिलाओं को अपने अधिकार जानने होंगे .तभी नई ताकत एवं पक्के इरादों से भेद-भावहीन समाज बनाया जा सकेगा जो सही विकास का मार्ग खोल सकेगा. . *हमारा भारतीय समाज एक नए सामाजिक स्वरुप में उज्ज्वलता की ओर अग्रसर* होगा.. महिला व उनके परिजनों ,साथ ही समाज के हर वर्ग के जागरूक नागरिक के हित-चैतन्य-आस्था-विश्वास हेतु समस्त जानकारी बहुत संक्षेप में प्रस्तुत है.. . *कुछ मुख्य अधिकार - कानून व सहायता*.
· संविधान के अनुसार महिलाओं के मौलिक अधिकार----- मौलिक अधिकार वे बुनियादी अधिकार हैं जो जीवन के लिए जरूरी होते हैं. हर मनुष्य को कुछ अधिकार की जरुरत होती है जिसके बिना वो सही जीवन नहीं जी सकता १ समानता का अधिकार( संविधान के अनुसार सभी नागरिक सामान हैं.धर्म,लिंग,जाति या जन्म स्थान का आधार पर भेद-भाव नहीं किया जा सकता. २.स्वतंत्रता का अधिकार(जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) ३ शोषण के विरुद्ध अधिकार(किसी भी प्रकार का शारीरिक-mansik शोषण ) ४ धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ५ संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार ६. संवैधानिक उपचारों का अधिकार . . मुफ्त कानूनी सहायता-औरतें और बच्चे (देश की हर अदालत में मुफ्त कानूनी सहा.केंद्र उपलब्द्ध हैं). . अन्य आवश्यक अधिकार व कानून . 1 पिता की संपत्ति पर अधि.2 शादी के बाद नाम बदलने की जबरदस्ती नहीं 3 अपनी कमाई व स्त्री धन पर अपना अधि.4 समान काम समान वेतन 5 18 वर्ष की उम्र के बाद अपने निर्णय को स्वतंत्र.. कानूनी सहायता एवं सजा (केवल मुख्य जानकारी का उल्लेख) . . (निम्न कोई अपराध होने पर किसी महिला- संगठन,जागरूक संस्था या सक्षम व्यक्ति को साथ ले जाना चाहिए ) 1.ऍफ़.आई.आर.कराएं.रिपोर्ट न लिखने पर (jaen) 1 .कलेक्टर.2 स्थानीय समाचार पत्र-मीडिया को जानकारी 3 राष्ट्रीय महिला आयोग 4 अपने राज्य के महिला आयोग.. 1 बलात्कार ------ धारा 376 -सजा कम से कम ७ से १० साल या आरोप सिद्ध होने पर उम्र कैद.जुरमाना . २ बाहरी हिंसा या छेड़छाड़ धारा २९४ या ३५४ किस तरह का आरोप है उसपर आधारित सजा जेल.. ३दहेज़-वर्त्तमान में समाज की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या. . लेना+देना दोनों अपराध. कम से कम ६ माह की सजा+१०,००० रु. बढकर १५,००० रु.,५ साल की सजा. दहेज़ हत्या -३०४ B-साक्ष्य+गवाह दोनों हो .(केस सिद्ध होने पर बड़ी से बड़ी सजा का प्रावधान ) . . ४ पत्नी को तलाक़ या छोड़ने के बाद धा. १२५ के अंत.गुजारा भत्ता.बच्चे का खर्चा . . ५ घरेलू हिंसा होने पर-४९८ A १८६० शारीरिक या मानसिक क्रूरता-नए कानून के अनुसार उत्पीडन हिंसा करनेवालों को तुंरत गिरफ्तार,पूछताछ या सफाई देने का भी मौका नहीं (इस कानून का बहुत दुरूपयोग भी हो रहा है अक्सर दुर्भावना से लड़की या उसके परिजन विरोधी पक्ष को झूठा भी फंसा दे रहे है जो नहीं होना चाहिये पीडीत पक्ष ही रिपोर्ट करे,अन्यथा ये सुविधा हटने से मुश्किल आ सकती है. ). . ५. कामकाजी महिला के लिए कानून -खास अधिकार .१ सरकार द्वारा निर्धारित वेतन की उपलब्धता २ महिलाओं की सुरक्षा के अनुसार ही काम लेना जरुरी. ३ प्रसूति सुविधा(अभी और बढा दी गई है) . . ६ लिंग जाँच या भ्रूण हत्या रोकने का कानून.अधि.१९९४.इ. धारा ३१२ -३१६ . . ५ साल की कैद व १०,००० रु. जुरमाना , दूसरी बार में ५०,००० तक . . महिलाओं के लिए मुख्य सरकारी योजनाएं. . १ बालिका सम्रद्धि योजना २ मात्रत्व लाभ योजना ३ विधवा पेंशन ४ वृद्धावस्था पेंशन.५ इंदिरा आवास योजना ६.अनुसूचित या गरीबी से नीचे वर्ग की लड़की के विवाह हेतु सहायता.७ राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना ८ स्वर्ण जयंती रोजगार योजना १० गांवों के पंचायती राज्य में ३३% आरक्षण 11.प्रत्येक समिति में महिला व दलित महिला की भागीदारी निश्चित. और भी अनेक योजनाएं हैं समयानुसार बदलती रहती हैं. . हम आप सब जानते है *मानव जीवन एक सामूहिक संस्था *है. समाज के सुगम सञ्चालन के लिए परिवार बने हैं . स्त्री-पुरुष व उनका परिवार एक दुसरे के पूरक है उनके आपसी सामंजस्य के बिना कुछ नहीं हो सकता.वास्तव में परिवार के हर सदस्य की अपनी प्रतिष्टा-आवश्यकता–जिम्मेदारी-बाध्यता होती है.हमारी पूरी श्रंखला केवल *समाज को चैतन्य* करने की कोशिश है क्योंकि यदि हमारे परिवार की *महिला-शक्ति* का ह्वास होता रहा तो समाज कहाँ चला जायेगा अकल्पनीय है. उसके समग्र विकास के लिए हर परिवार थान ले तो भारत कितना उज्जवल होगा जरा सोचकर देखें…………. . पुराणों में माना गया है .. जग जीवन पीछे रह जावें,यदि नारी दे न पावे स्फूर्ति .इतिहास अधूरे रह जावें ,यदि नारी कर न पावे पूर्ति.. क्या विश्व कोष रह जावें ,होवे अगर न नारी विभूति .क्या ईश्वर कहलायें अगम्य,यदि नारी हो न रहस्य मूर्ति.
§ *अलका मधुसूदन पटेल*













Thursday, March 26, 2009

*नारी* ब्लॉग की सूत्रधार "रचनाजी एवं आपके सभी सहयोगी सदस्यों" को "हिंदी नव संवत्सर" की पूर्व संध्या पर *नारी* के एक वर्ष पूरा होने की "हार्दिक बधाई व असंख्य शुभकामनाएँ". श्रंखलाएं हों पगों में ,गीत गति में है सृजन का,है कहाँ फुर्सत पलक को ,नीर बरसाते नयन का,उठो आगे बढो ,ये समय है कुछ कर दिखाने का. स्मरण रहे ,जब सागर में आये झोंके ,किसमें ताकत आये रोके,शोषित सूखी सरिताओं के ,आहों का अरमान उठा है,लहरों में तूफ़ान उठा है............सबको नमन.*अलका मधुसूदन पटेल*
March 26, 2009 5:23 PM

Sunday, March 22, 2009

*तुम बोलोगी ,मुख खोलोगी ,तभी तो जमाना बदलेगा *
नव जागरण की अपार संभावनाएं हैं.
हजारों साल के शोषण के बाद भारतीय महिला में एक नयी जाग्रति की लहर आई है. वो अपने अस्तित्व, अधिकार, सहभागिता के लिए निरंतर चैतन्य हो रही है जो उसके सोच-विचार में एक अभूतपूर्व परिवर्तन लाने के साथ एक नया द्रष्टिकोण लेकर आई है, वह स्वर मुखर करने का साहस जुटा रही है. आत्म-विश्वास, अपनी शक्ति पहचानने की जरूरत है , निःसंकोच अपनी आवाज बुलंद करे जाग्रत हों. अभी तक भारतीय महिलाओं को निरक्षरता-अंधविश्वास-दीनता की चाहरदीवारी में रखा गया जिसके कारण वे अपना आत्म-विश्वास, अपनी शक्ति को भूल चुकी हैं. भारत के मजबूत भविष्य के लिए महिलाओं को मजबूत करना होगा. भारत के नए भविष्य की मुख्य धूरी हैं. उन तक सही रचनात्मक संसाधनों, उनके उपयोगी अधिकार ,पर्याप्त जानकारी पहुँचाना व उनकी समस्याओं को दूर करके, उनके विचारों-निर्णयों को मान्यता देना होगा. सामाजिक स्तर में क्रांतिकारी बदलाव के साथ जनसँख्या नियंत्रण,सही पोषण,सही शिक्षा व स्वास्थ्य की चुनौतियाँ का सफलतापूर्वक सामना करने की आवश्यकता है. महिलाऐं अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझती हैं समर्पित भाव से कार्य करती हैं .उनका संघर्ष शुरू हुआ है, अनेक स्वार्थी लोग अभी भी उनके अधिकारों-विचारों का विरोध कर रहे है. कुछ कटिबद्ध लोग व संगठन सभी स्तर पर उनके साथ उठ खड़े हुए हैं व उनको पर्याप्त जानकारी+ अधिकारों से जाग्रत कर रहे हैं.
*नेहरूजी का कथन है अगर आप किसी राष्ट्र के बारे में मेरी राय जानना चाहते हैं तो मुझे उस देश में महिलाओं की स्थिति के बारे में बताएं.*
अलका मधुसूदन पटेल -

Friday, March 13, 2009

पुस्तक *ईश्वर की नियामत पुत्री*-*दी डाटर्स आर ग्रेट* के कुछ अंश महत्व पूर्ण प्रश्न ?वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में अति संवेदनशील,ज्वलंत,विचारणीय प्रश्न बार-बार सामने आता है. समग्र संसार की धूरी हमारी "बेटियाँ-नारी शक्ति" क्यों जन्म से इतनी असहाय ,त्याज्य,तिरस्कृत,उपेक्षिता बनाकर उदासीनता या हीनता से देखी जाने लगी है. गर्भ में नष्ट करने वाली ये घ्रणा करने योग्य अमानुषिक घटनाएँ, समाज में व्याप्त असभ्य अशम्य ,अविश्वसनीय दुर्व्यवहार ,अमानवीय, अशोचनीय गंभीर अपराधिक घटनाएँ ,दहेज़ हत्याएं, बलात्कार आदि अनेक अपराध निरंतर बढते जा रहे हैं. समस्त प्रयास होने के बाद भी कमी आने के बदले ज्यादा होते जाते हैं.इसको कम करने के लिए इसकी शुरुआत बच्ची के जन्म के साथ ही करनी पड़ेगी, तब ही इस समस्या का समाधान का प्रारंभ हो सकेगा.सामाजिक संतुलन लगातार बिगड़ रहा है. समाज में लड़कियों-लड़कों का अनुपात ८००-१००० पहुँच रहा है. यह अंतर समाज के हर वर्ग,जाति,धर्मं में चिंतनीय रूप से परिलक्षित हो रहा है. सोचना और देखना ये है कि समाज में जागरूक नव-चेतना कैसे लाई जाये. लगातार बढती घरेलू हिंसा को रोकने के लिए क्या किया जाये.क्योंकि इसकी शुरुआत तो उसके पैदा होने के पहले से ही उसके अपने जीवन में शुरू हो जाती है.हम जानते हैं हमारी पुत्रियों के साथ इस दुनिया में पैदा होते ही दुर्व्यवहार शुरू हो जाते हैं. जन्म लेते ही उसके खुद के परिवार में असहयोग,नकारात्मकता, पुत्र की तुलना में संकुचित भेदभाव ,असहनीय मानसिक-शारीरिक-उत्पीडन-शोषण-आर्थिक-अवमूल्यन होने लगता है. शिक्षा के क्षेत्र में भी भेद रहता है. अक्सर पुत्र से अधिक योग्यता रखने वाली पुत्री को मनचाही पढाई करने का मौका नहीं मिल पाता.गंभीर विचारणीय प्रश्न है कि हमारे समाज में स्वयं के "परिवार में पुरुष वर्ग की तुलना में घर की महिलाऐं" ही बेटे-बेटियों में अंतर करती हैं. प्रगतिशील समाज में भी बिटिया को पूरे अधिकार नहीं मिल रहे ,क्या अपने परिवार में लड़की का रूप लेने से ही उसका पद नीचा हो जाता है. अपनी बेटी को न्यायोचित अधिकार स्नेह-संरक्षण दिलाने का प्रारंभ जब तक उसके पैदा होते ही नहीं होगा ,समस्या बढती जायेगी. इसके निदान-समाधान खोजने होंगे. जागरूक-प्रबुद्ध लोगों को एक मंच पर आकर आपसी सहयोग से कार्य करने होंगे.आधुनिक समाज कितनी तेजी से परिवर्तित हो रहा है हर क्षेत्र में प्रगति दिखती है पर यहाँ गिरावट बढती जाती है. स्रष्टि का ये अद्भुत वरदान नारीस्वरूप में जन्म लेकर जीने का अधिकार नहीं पा रहा है. पृथ्वी पर असंतुलन होने से क्या होगा ,सोचा नहीं जा सकता. इस अकल्पनीय परिस्थिति का जिम्मेदार कौन ? ********************************************************************* "ईश्वर का वरदान है बेटी"(THE DAUGHTERS ARE GREAT)*जब जब तुम मेरे ऊपर अपना माथा रखकर कहती हो *माँ*,तो वहां प्रतिघोष गूँज उठता है-----संपूर्ण स्रष्टि की गुहा में. सघन गहराइयों से भेदकर आता ,जीवन के समस्त स्नेह भावों के अर्क सा.वह शब्द प्यारा सा नन्हा सा,और ले उठता है हिलोर,मन मेरा कोमलता सा.*पुत्री का सर्वप्रथम प्रिय रूप वही है,जब वह नवजात स्नेही बेटी कोमल पुष्प सद्र्श भूमिष्ट होकर माँ-पिता को आल्हादित करती है. जन्म से ही कन्या का रूप बहुत भोला प्यारा होता है. हमारी ही संतान बेटी का नन्हा स्वरुप हमारे मन में पुत्र से कोई भेद उत्पन्न नहीं कराता . भारत में तो पुरातन से वर्तमान संस्कृति में पुत्री को परिवार में उच्च स्थान प्रदान किया जाता रहा है. माँ-पिता की छत्रछाया में रहकर वह सदैव उनके निकटस्थ बनी रहती है. बचपन से बड़े होने तक वह उनकी ही नहीं अपने सभी परिजनों की आज्ञापालन करके महान कर्तव्यों का पालन निःस्वार्थ करके योग्य सिध्द होती है. समुचित संस्कार मिलने से समस्त कुटुंब के प्रति अपनी स्नेहिल भावनाओं के साथ सदैव समर्पित बनी रहती है. आदर्श परिवारों में वह माता-पिता के पुत्र जैसे ही बल्कि उससे अधिक वात्सल्य प्राप्त करती है. बाल्य अवस्था के क्रीडा-कौतुक से सबकी प्रिय होती है.अपने अग्रज-अनुज भाइयों जितनी ही सबको प्रिय होती है. लक्ष्मी स्वरूपा बेटी परिवार में ममता-स्नेह की मधुर गंध महकाती है. बाल्यकाल से लाडली होने के साथ परिवार के हर सदस्य का सहारा बन जाती है परार्थ सहयोग को तत्पर. *जिसे तुम समझे हो अभिशाप,जगत की ज्वालाओं का मूल.ईश का वह रहस्य वरदान , प्रिये मत जाओ इसको भूल .* (A DAUGHTER IS CROWN OF HER FATHER-FAMILY)प्रेमपात्रा बिटिया तो समर्पिता बेटी है,स्नेहमयी भगिनी है,निमिष्मात्र में स्व को विस्मृत करके अग्निसाक्षी मानकर दूसरे सर्वथा अनजाने कुल को अपने को अर्पित कर देती है. पत्नी बनकर कर्त्तव्यशील श्वसुरकुल के लिए समर्पित बहू बनकर सबको आकर्षित करके नए परिवार-परिवेश में भी सबकी लाडली बन जाती है वही उसका घर बन जाता है.. केवल एक नहीं दो परिवारों की शोभा बन जाती है.*ग्रहेषु तनया भूषा ,भूषा संपत्सुपंडिता: ,पुसाम भूषाम सद्बुद्धि: स्त्रीनाम भूषाम सलज्जता.* भविष्य के नागरिकों की माता बनकर संसार का सर्वोच्च आसन ग्रहण करती है. माँ का अतुलनीय स्वरुप आजीवन प्रदर्शित करती है, संपूर्ण परिवार के लिए एक संस्था ही होती है. विश्वासपूर्वक स्नेहार्पित शांति व दया की देवी होती है. उसकी उत्सर्गमयी भावनाओं ने ही उसे प्राचीनकाल से देवितुल्या मान लिया है. *(STERN DAUGHTER IS THE VOICE OF GOD ,'O' DUTY ! OF THAT NAME THOU LOVE ,WHO ACT A LIGHT OF GUIDE ,A ROD ,TO CHECK THE ERRING &REPROVE)*पुत्री के आत्म-विश्वास और आत्मसंतोष से परिपूर्ण व्यक्तित्व द्वारा वह किसी भी विशिष्ठ परिस्थिति में सभी परिजनों के लिए ह्रदय से सेवानिष्ठ बनी रहती है.आत्म-अनुशासन व स्वनियंत्रण उसके मुख्य गुण हैं. उसका जीवन ही दो कुलों को जोडकर गौरवान्वित करना बन जाता है.घनीभूत सहजता ,सरल ह्रदय पुत्री का जीवन ही अपनों के लिए न्यौछावर है. पुत्री की नैसर्गिक प्रवर्ति ही कोमलता से ओत-प्रोत होती है. उसे दैहिक व वैचारिक कैद में नहीं सामंजस्य में रखने की जरुरत है. उसका व्यक्तित्व जितना स्वतंत्र विकासमयी ,श्रेष्ट शिक्षित होगा वह दोनों कुलों में अपनी कीर्ति पताका फैलाएगी.प्रखर बनकर वह अपना ही नहीं अपने परिजनों का नाम रोशन करती है व उनसे आजीवन जुडी रहती है. नए परिवेश या परिवार में जाकर भी अपने कर्तव्यों को नहीं भूला करती. हम सबके समक्ष वर्तमान परिप्रेक्ष्य सिद्ध करता है कि अपने स्वाभाविक गुणों के कारण *पुत्री*- *पुत्रों* से अधिक परिवार के साथ सदैव जुडी रहती है ,चाहे जहाँ रहे वह सबका ध्यान रखती है. जबकि पुत्र बहुत बार कर्त्तव्य विमुख होकर अपने आश्रितों को छोड़ देते हैं. (तब हमारे मन में, हमारे परिवार में उसके बचपन से बड़े होने तक दोहरापन ,ये भेदभाव क्यों ?) समाज में अपने सद्गुणों, सुह्रदयता,सेवापरायणता,परार्थता व संस्कारी संवेदनशील स्वभाव से मुख्य धूरी बनी रहती है. अपने ही नहीं सबके लिए आनंद-वेदना ,सुख-दुःख,सुदिन-दुर्दिन ,निराशा-आशा,उत्साह-निरुत्साह की सहभागिनी व संबल बनी रहती है. सही न्याय व मांगल्य रूप से परिजनों का साथ आजीवन देती है.भारत ही नहीं सारे संसार में जाने कितने उदाहरण मिल जायेंगे की एक पुत्री ने अपना जीवन अपना ना बनाकर अपने परिवार के लिए होम कर दिया. बहुत ऊँचाई पर पहुँच कर भी स्वयं को परिजनों को समर्पित करके रखा .माता-पिता ,भाई-बहिनों की खातिर अपने जीवन को बिसर कर रखा.यही नहीं आवश्यकता पड़ने पर अपने परिवार की खातिर अपने सुखों को तिलांजलि देने की हिम्मत रखती है. उसके उत्सर्गमयी उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है.अपना खुद का नया जीवन-परिवार नहीं बसाकर अपने माँ-पिता-परिजनों की आजीवन सेवा समर्पिता बनी है व बनती है. अगर संपूर्ण चिंतन मनन करके सोचा जाये तो वास्तविकता में आज परिवार में पुत्री जितनी जिम्मेदारी से अपने माँ-पिता-बंधुओं का ख्याल उनके वृद्धावस्था तक रखती है, यह उसकी विशेषता है. इसमें कही कमी आज भी नहीं दिखलाई देती है. क्या हम अपनी पुत्री की इस विशिष्टता की महत्ता को नहीं पहचानते जो अपने परिवार में ही उसके अधिकारों से उसको वंचित करके उसके उज्जवल भविष्य में रोड़ा बनते हैं.क्या ऐसे अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत करती बेटी केसाथ अन्याय या सामाजिक अंतर सर्वथा अनुचित नहीं ? (DAUGHTERS HEARTS ARE ALWAYS SOFT & MEN LEARN TENDERNESS FROM THEM)प्राकृतिक रूप से प्राप्य शारीरिक कोमलता पुत्री के जीवन का अभिशाप नहीं वरदान है यही विभिन्नता कुछ हद में कर्मक्षेत्र में उसे पुत्र से अलग करते है, क्योंकि सारे जगत का सञ्चालन नियमबद्ध है अतः प्रक्रतिजन्य विशेषता को तो स्त्रियोचित सम्मान देना चाहिए ,परिवार में बेटी के साथ अच्छा आचार-विचार रखना चाहिए न कि उसमे हीनता का भाव भरना चाहिए.संसार का सबसे दुरूह-दुष्कर गुरुतर *नव-सृजन* कि अद्भुत क्षमता भगवान ने बालिकाओं को दी है. उसके बिना जगत का संचालन ही रुक जायेगा. प्रकृति का सर्वश्रेष्ट मात्रत्व का दुर्लभ गुण उसको मिला है. अपना जीवन दांव पर लगाकर वह अपनी सन्तान को जन्म देकर वह संसार चलाने का भार उठाती है ,इसे उसकी कमजोरी नहीं मानकर समाज को तो उसका उरिणी होना चाहिए. सारी सुविधाएँ सामने रख देना चाहिए. उसकी पूरी सुरक्षा का सही निर्वहन भी नियमपूर्वक करना परिवार-समाज का सबसे बड़ा दायित्व व नैतिक जिम्मेदारी है. जिस परिवार में पुत्री ने जन्म लिया है पहले वहीँ उसका स्थान सम्मानित रहे ,बालिका या बेटी होने के कारण संकुचित या निरापद न बने ,विशेष ध्यान रहना चाहिए. स्वयं उसके परिवार में यदि भेद होगा, शोषण होगा तो उसका जीवन बचपन से पिछड़ जायेगा. हाँ उसको यदि परिवार में पूरा महत्व-सम्मान-अधिकार मिलेगा तो सामाजिक जन-चेतना बढेगी. नयी दिशा मिलेगी. पुत्र से तुलनात्मक कोमल शारीरिक संगठन के कारण ही उन्हें एक सावधान संरक्षक की जरूरत जरूर होती है पर किसी दबाव या वैचारिक-शारीरिक-आर्थिक परतंत्रता कि नहीं. *पिता रक्षति कौमारे,भरता रक्षति यौवने..रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा, नः स्त्री स्वतंत्र्य महर्ति.*प्राचीनकाल से ही चली आ रही परम्पराओं में पुत्री का स्थान ना अपने परिवार में बल्कि सारे समाज में उच्च रहा है ,अति स्नेह संरक्षण आदर प्राप्त होता रहा है. नारी शक्ति की महिमा उसे देवी स्वरूपा मानकर की गई है. उसे समुचित लालन-पालन के साथ उसकी योग्यता के अनुसार इतना योग्य बना देना चाहिए कि वह स्वयं अपने पैरों पर खड़े होकर आर्थिक स्वावलंबी बने.आत्म-विश्वासी बने. वर्त्तमान समय को देखते हुए यही आज की सबसे बड़ी जरूरत है. बालिका के परिवार में आने से समाज में अपना एवं उसका स्थान ऊँचा बनाने में परिवार का कर्त्तव्य होता है. जब वह इतनी योग्य बना दी जायेगी तो समाज में प्रचलित बुराइयाँ व लड़की के प्रति प्रचलित सारी विषमता-असमानता हट जायेंगे. पूर्ण शिक्षित व जागरूक होकर, अपना अच्छा-बुरा समझ सकने वाली बेटी के साथ तभी न्यायोचित व्यवहार हो सकेगा.समाज में वह योग्य पुत्री,पत्नी,बहू,माँ बनकर सम्माननीय जीवन प्राप्त कर सकेगी व हमारे परिवार में पुत्री जन्म की खुशियाँ मनाई जा सकेंगी समाज में लोगों को दोष देने के बदले अच्छे कार्यों का प्रारंभ हमें अपने घरों से ही करना होगा कटी-बद्ध होना होगा. तब हमारी बेटी के साथ विद्वेष.भेद.शोषण,अन्याय या गलत कार्य करने के पहले दूसरे लोगों को सोचना होगा.साथ ही उसमे इतना आत्म-विश्वास व योग्यता आ जायेगी कि वह स्वयं अपने पर होने वाले अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाकर अपना उत्कर्ष कर पायेगी. *ईश्वर की नियामत को दिव्य बनाएं, अपनी प्यारी बेटी को सम्मान दिलाएं.*
"या पुत्री: पूज्यमाना तु देविदीना तु पुर्वत:. यज्ञ: भाग: स्वयं ध्रते यह वामा तु प्रकीर्तिता."
********************************************************************************************************************************परिवर्तन* अपने प्रति विसंगतियों एवं असामान्य व्यवहार के साथ उपरोक्त अनेक कारणों से हमारी वरदान स्वरुपा बेटी कहीं विद्रोह कर उठी है तो कहीं जाग्रत होकर आगे आने को आतुर. जो मनुष्य के स्वभाव का प्राकृतिक रूप है.१. अपना अस्तित्व अधिकार,अपनी विलक्षण क्षमताओं को जानकर उसका स्व जाग्रत हो गया है एवं वह विद्रोही ही नही कही आक्रामक भी हो गई है. तेजस्वी होती जाती है.२.अपनी अस्मिता ,सम्मान के लिए उसने अब सर झुकाकर नहीं आत्म-निर्भर होकर स्वाभिमानी+साहसी बनकर जीना सीख लिया जाग्रत होकर उठ खड़ी हुई है. विद्वजनों के अनुसार ,जो कर झुलाएं पालना, वही जगत पर शासन करें.३.अपने उपर अत्याचारों ,अनाचारों ,विद्वेष से घबराकर ,दूसरों के द्वारा सताए जानेपर ,स्वयं को बोझ माने जाने पर महिला शक्ति कही-कही अपनी नारीसुलभ कोमलता को भूल क्षुभित होकर अपनी मूल प्रवर्तियाँ आदर्श ,त्याग,ममता,कर्त्तव्य,दायित्व,सहृदयता,सदाशयता, सेवा, शिष्टाचार आदि अपने मानसिक क्लेश के कारण भूलती जा रही है. ये परिवर्तन उसके व्यक्तित्व के अनुकूल नहीं होते पर कठिन परिस्थितियों में जब सारे दोष उस पर मढ़ दिए जाते हैं तो वो बदल जाती है.. सद्भावनापूर्वक विचार करके परिवर्तनों का निदान संभव है.३.पूर्ण शिक्षित , स्वावलंबी ,आर्थिक आत्मनिर्भर ,सुव्यवस्थित होकर अबला ने सबला बनाने की ओर कदम बढा लिए हैं .चैतन्य होकर आगे आने से पारिवारिक दरारें-मतभेद द्रष्टिगत होने लगे हैं. क्योंकि उसके आर्थिक स्वावलंबी होने के साथ उसमे जो आत्म-विश्वास आता है वह रूढिगत विचार वाले कुछ परिजनों का अच्छा नहीं लगता.४.कहीं परिजनों से, समाज से सुद्रढ़ता या सहारा न मिलने पर वह अपने आप को पाश्चात्य संस्कृति में ढाल रही है. अति महत्वकांशी होकर संस्कार भूल रही है. तो उसे भारतीय संस्कृति का अवमूल्यन कहा जा रहा है.जहाँ आपसी समझौते से निराकरण संभव है.५.कौटुम्बिक प्रणालियों का विघटन ,एकाकी परिवारों का चलन ,वरिष्ट परिजनों का असम्मान ,आपसी रिश्तों का अवमूल्यन इन्ही आपसी तालमेल की कमी व जनरेशन गैप के कारण हो रहा है.समाज में कहाँ किसका कितना दोष है ,इसे अलग हटाकर ,विचार करके आपस में एकजुट-एकमत होकर चिंतन करके मंथन की जरूरत है. बेहतर उपायों-उपचारों द्वारा नारी शक्ति के भले के लिए सभी को समाज में फैलती बुराइयों-कठिनाइयों को दूर करने की सघन आवश्यकता है.स्रष्टि की जगतदायिनी ,समाज में परिवार का संवर्धन करनेवाली ,अपने परिजनों को रचनात्मक-भावनात्मक संबंधों द्वारा अभिन्न रखनेवाली विलक्षण गुणों वाली बेटी को अपने स्नेही पुत्र के बराबर दर्जा देना ही होगा.उसके जन्म से ही रक्षा-अन्वेषण का भार मुक्त ह्रदय से स्वीकारना होगा. जन-जन को जाग्रत करने का, बेटी को पूरे अधिकार देने का गुरुतर भार उसके जन्म देने वाले परिवार से ही शुरू करके समाज में लाना होगा. प्यार-सत्कार ही काफी नहीं उच्च-शिक्षिता संपूर्ण योग्य बनाकर पुत्र-पुत्री के बीच बिना कोई भेद किये आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करना होगा. विशाल ह्रदय होकर जब हम अपनी बेटी को सुयोग्य बनाकर गर्व करेंगे तो समाज में चारों ओर छाया अंधकार अपने आप रोशनी की तरफ बढेगा .पुत्री भी अपनी आभा फैलाकर नई उडान को बढेगी. भगवान के प्रक्रतिजन्य आशीर्वाद को सहानुभूति से नहीं सद्गुणों से ज्योतिर्मयी बनाना होगा. माँ तेरे हाथों में मेरा जीवन,दे प्राणों का दान.शिक्षारूपी पंख लगा दे , भरूं गगन में उडान. चहक-चहक करउडूं,गगनसे चाँद सितारे लाऊं.उजियारी फैलाऊँगी माँ , मत ले मेरी जान. लेखिका--अलका मधुसूदन पटेल(ये मेरा अपना मौलिक लेख है, मेरी प्रकाशनाधीन पुस्तक *भगवान का तो वरदान है बेटी* के कुछ अंश) ********************************************************************************************************************************
r






Monday, March 9, 2009


*अपना रास्ता बनाना होगा*


बहुत सो चुकीं बहुत रो चुकीं,जागो अब सोने का समय नहीं है।


जगना ही नहीं जगाना होगा , अपना मान स्वयं बढ़ाना होगा।


अपना रास्ता बनाना होगा ----------


इक्कीसवीं शताब्दी की चौखट पर कदम रख दिया है तुमने।


आशा, विश्वास, प्रगति का अग्नि-दीपक जला दिया है तुमने।


सजग सरल,मुदित म्रदुल सपने, कर्मठ स्वस्थ तन लिए हुए।


करों में कोमल सुमन,पुलकित मन नई आकांक्षाएं लिए हुए।


होठों से बरसे नेहराग औ मुठ्ठियों में आसमान समेटे हुए।


भावनाओं की छलकती सरिता,नेत्रों में अथाह-समुद्र लिए हुए।


उठो!आगे बढो!अपनी शक्ति पहचानो,अपने नभ को तोलो।


विराट जगत की स्वामिनी हो तुम,बंद हैं द्वार अब खोलो।


विश्वास करो तुम्हारी आस्था भी लहलहाएगी एक दिन।


आत्म-सम्मान से तुम्हारी जिंदगी जगमगाएगी एक दिन।


संभलो पहिला पग बढ़ाओ ,न झिझको अब एक भी क्षण।


अपनी शक्ति-मेधा की प्रज्वलित कर दो अब नई किरण।


बहुत सो चुकीं बहुत रो चुकीं ,बहुत छली जा चुकी हो तुम।


साजिशों में घिरीं,बंदिशों में बंधी रहीं,होतीं गुमराह रही तुम।


अंत करो इस भेद नीति का, उठाना ही होगा पहिला कदम।


न मिले प्रेम से सत्कार,हक़ छीनने को सजग होजाओ तुम।


अपना झगडा कटु विषमता चाटुकारिता को त्यागना होगा।


अस्तित्व अपना बचाने खातिर नितचुनौती से जूझना होगा।


दहेज़,बलात्कार,भ्रूणऔआत्महत्या शब्दकोश से मिटाना होगा।


गलत प्रथाओं , रुढियों ,झूठे रस्मो-रिवाजों को मिटाना होगा।


सौंदर्य की प्रतिमूर्ती तो हो पर न बनो किसी की कठपुतली तुम।


गलत विज्ञापनों प्रतियोगिताओं,पाश्चात्यता के चोंचलों से बचो तुम।


शाश्वत,सुसंस्कृत अस्मिता औ गौरव अपने में समेटे रहो तुम।


सभी मद, भ्रम,मोह माया स्वार्थों को धूमिल कर दो अब तुम।


अभी तो जीवन पथ नया मिला है सफ़र लम्बा है,


चलते जाना है मीलों दूर----- बहुत दूर-------------,


अग्निशिखा बनके, अंधेरे दूर करके,


घिरी परछाइयों से बाहर निकल के,


अपना आन्शियाँ बनाना होगा,अपना रास्ता चुनना होगा,


लगे पग-पग पर बाधा-अढंगा, लेना पड़े चाहे कोई पंगा।


नहीं घबराना , न टकराना न हुलसाना,


अपनी आस्थाओं,अपेक्षाओं को तलाशना,


ये नई सदी है बहिनों--------


अपना रास्ता अपने आप ही बनाना होगा।


अपने इन्द्रधनुष के रंगों को चुनना होगा।


आओ कदम दर कदम बढाओ कुछ करके अब दिखाओ।


मन के संकल्पों को लिया बस अब आगे बढ़ते ही जाओ।


*अलका मधुसूदन पटेल.*