Thursday, March 26, 2009
March 26, 2009 5:23 PM
Sunday, March 22, 2009
नव जागरण की अपार संभावनाएं हैं.
हजारों साल के शोषण के बाद भारतीय महिला में एक नयी जाग्रति की लहर आई है. वो अपने अस्तित्व, अधिकार, सहभागिता के लिए निरंतर चैतन्य हो रही है जो उसके सोच-विचार में एक अभूतपूर्व परिवर्तन लाने के साथ एक नया द्रष्टिकोण लेकर आई है, वह स्वर मुखर करने का साहस जुटा रही है. आत्म-विश्वास, अपनी शक्ति पहचानने की जरूरत है , निःसंकोच अपनी आवाज बुलंद करे जाग्रत हों. अभी तक भारतीय महिलाओं को निरक्षरता-अंधविश्वास-दीनता की चाहरदीवारी में रखा गया जिसके कारण वे अपना आत्म-विश्वास, अपनी शक्ति को भूल चुकी हैं. भारत के मजबूत भविष्य के लिए महिलाओं को मजबूत करना होगा. भारत के नए भविष्य की मुख्य धूरी हैं. उन तक सही रचनात्मक संसाधनों, उनके उपयोगी अधिकार ,पर्याप्त जानकारी पहुँचाना व उनकी समस्याओं को दूर करके, उनके विचारों-निर्णयों को मान्यता देना होगा. सामाजिक स्तर में क्रांतिकारी बदलाव के साथ जनसँख्या नियंत्रण,सही पोषण,सही शिक्षा व स्वास्थ्य की चुनौतियाँ का सफलतापूर्वक सामना करने की आवश्यकता है. महिलाऐं अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझती हैं समर्पित भाव से कार्य करती हैं .उनका संघर्ष शुरू हुआ है, अनेक स्वार्थी लोग अभी भी उनके अधिकारों-विचारों का विरोध कर रहे है. कुछ कटिबद्ध लोग व संगठन सभी स्तर पर उनके साथ उठ खड़े हुए हैं व उनको पर्याप्त जानकारी+ अधिकारों से जाग्रत कर रहे हैं.
*नेहरूजी का कथन है अगर आप किसी राष्ट्र के बारे में मेरी राय जानना चाहते हैं तो मुझे उस देश में महिलाओं की स्थिति के बारे में बताएं.*
अलका मधुसूदन पटेल -
Friday, March 13, 2009
"या पुत्री: पूज्यमाना तु देविदीना तु पुर्वत:. यज्ञ: भाग: स्वयं ध्रते यह वामा तु प्रकीर्तिता."
********************************************************************************************************************************परिवर्तन* अपने प्रति विसंगतियों एवं असामान्य व्यवहार के साथ उपरोक्त अनेक कारणों से हमारी वरदान स्वरुपा बेटी कहीं विद्रोह कर उठी है तो कहीं जाग्रत होकर आगे आने को आतुर. जो मनुष्य के स्वभाव का प्राकृतिक रूप है.१. अपना अस्तित्व अधिकार,अपनी विलक्षण क्षमताओं को जानकर उसका स्व जाग्रत हो गया है एवं वह विद्रोही ही नही कही आक्रामक भी हो गई है. तेजस्वी होती जाती है.२.अपनी अस्मिता ,सम्मान के लिए उसने अब सर झुकाकर नहीं आत्म-निर्भर होकर स्वाभिमानी+साहसी बनकर जीना सीख लिया जाग्रत होकर उठ खड़ी हुई है. विद्वजनों के अनुसार ,जो कर झुलाएं पालना, वही जगत पर शासन करें.३.अपने उपर अत्याचारों ,अनाचारों ,विद्वेष से घबराकर ,दूसरों के द्वारा सताए जानेपर ,स्वयं को बोझ माने जाने पर महिला शक्ति कही-कही अपनी नारीसुलभ कोमलता को भूल क्षुभित होकर अपनी मूल प्रवर्तियाँ आदर्श ,त्याग,ममता,कर्त्तव्य,दायित्व,सहृदयता,सदाशयता, सेवा, शिष्टाचार आदि अपने मानसिक क्लेश के कारण भूलती जा रही है. ये परिवर्तन उसके व्यक्तित्व के अनुकूल नहीं होते पर कठिन परिस्थितियों में जब सारे दोष उस पर मढ़ दिए जाते हैं तो वो बदल जाती है.. सद्भावनापूर्वक विचार करके परिवर्तनों का निदान संभव है.३.पूर्ण शिक्षित , स्वावलंबी ,आर्थिक आत्मनिर्भर ,सुव्यवस्थित होकर अबला ने सबला बनाने की ओर कदम बढा लिए हैं .चैतन्य होकर आगे आने से पारिवारिक दरारें-मतभेद द्रष्टिगत होने लगे हैं. क्योंकि उसके आर्थिक स्वावलंबी होने के साथ उसमे जो आत्म-विश्वास आता है वह रूढिगत विचार वाले कुछ परिजनों का अच्छा नहीं लगता.४.कहीं परिजनों से, समाज से सुद्रढ़ता या सहारा न मिलने पर वह अपने आप को पाश्चात्य संस्कृति में ढाल रही है. अति महत्वकांशी होकर संस्कार भूल रही है. तो उसे भारतीय संस्कृति का अवमूल्यन कहा जा रहा है.जहाँ आपसी समझौते से निराकरण संभव है.५.कौटुम्बिक प्रणालियों का विघटन ,एकाकी परिवारों का चलन ,वरिष्ट परिजनों का असम्मान ,आपसी रिश्तों का अवमूल्यन इन्ही आपसी तालमेल की कमी व जनरेशन गैप के कारण हो रहा है.समाज में कहाँ किसका कितना दोष है ,इसे अलग हटाकर ,विचार करके आपस में एकजुट-एकमत होकर चिंतन करके मंथन की जरूरत है. बेहतर उपायों-उपचारों द्वारा नारी शक्ति के भले के लिए सभी को समाज में फैलती बुराइयों-कठिनाइयों को दूर करने की सघन आवश्यकता है.स्रष्टि की जगतदायिनी ,समाज में परिवार का संवर्धन करनेवाली ,अपने परिजनों को रचनात्मक-भावनात्मक संबंधों द्वारा अभिन्न रखनेवाली विलक्षण गुणों वाली बेटी को अपने स्नेही पुत्र के बराबर दर्जा देना ही होगा.उसके जन्म से ही रक्षा-अन्वेषण का भार मुक्त ह्रदय से स्वीकारना होगा. जन-जन को जाग्रत करने का, बेटी को पूरे अधिकार देने का गुरुतर भार उसके जन्म देने वाले परिवार से ही शुरू करके समाज में लाना होगा. प्यार-सत्कार ही काफी नहीं उच्च-शिक्षिता संपूर्ण योग्य बनाकर पुत्र-पुत्री के बीच बिना कोई भेद किये आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करना होगा. विशाल ह्रदय होकर जब हम अपनी बेटी को सुयोग्य बनाकर गर्व करेंगे तो समाज में चारों ओर छाया अंधकार अपने आप रोशनी की तरफ बढेगा .पुत्री भी अपनी आभा फैलाकर नई उडान को बढेगी. भगवान के प्रक्रतिजन्य आशीर्वाद को सहानुभूति से नहीं सद्गुणों से ज्योतिर्मयी बनाना होगा. माँ तेरे हाथों में मेरा जीवन,दे प्राणों का दान.शिक्षारूपी पंख लगा दे , भरूं गगन में उडान. चहक-चहक करउडूं,गगनसे चाँद सितारे लाऊं.उजियारी फैलाऊँगी माँ , मत ले मेरी जान. लेखिका--अलका मधुसूदन पटेल(ये मेरा अपना मौलिक लेख है, मेरी प्रकाशनाधीन पुस्तक *भगवान का तो वरदान है बेटी* के कुछ अंश) ********************************************************************************************************************************
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Monday, March 9, 2009
*अपना रास्ता बनाना होगा*
बहुत सो चुकीं बहुत रो चुकीं,जागो अब सोने का समय नहीं है।
जगना ही नहीं जगाना होगा , अपना मान स्वयं बढ़ाना होगा।
अपना रास्ता बनाना होगा ----------
इक्कीसवीं शताब्दी की चौखट पर कदम रख दिया है तुमने।
आशा, विश्वास, प्रगति का अग्नि-दीपक जला दिया है तुमने।
सजग सरल,मुदित म्रदुल सपने, कर्मठ स्वस्थ तन लिए हुए।
करों में कोमल सुमन,पुलकित मन नई आकांक्षाएं लिए हुए।
होठों से बरसे नेहराग औ मुठ्ठियों में आसमान समेटे हुए।
भावनाओं की छलकती सरिता,नेत्रों में अथाह-समुद्र लिए हुए।
उठो!आगे बढो!अपनी शक्ति पहचानो,अपने नभ को तोलो।
विराट जगत की स्वामिनी हो तुम,बंद हैं द्वार अब खोलो।
विश्वास करो तुम्हारी आस्था भी लहलहाएगी एक दिन।
आत्म-सम्मान से तुम्हारी जिंदगी जगमगाएगी एक दिन।
संभलो पहिला पग बढ़ाओ ,न झिझको अब एक भी क्षण।
अपनी शक्ति-मेधा की प्रज्वलित कर दो अब नई किरण।
बहुत सो चुकीं बहुत रो चुकीं ,बहुत छली जा चुकी हो तुम।
साजिशों में घिरीं,बंदिशों में बंधी रहीं,होतीं गुमराह रही तुम।
अंत करो इस भेद नीति का, उठाना ही होगा पहिला कदम।
न मिले प्रेम से सत्कार,हक़ छीनने को सजग होजाओ तुम।
अपना झगडा कटु विषमता चाटुकारिता को त्यागना होगा।
अस्तित्व अपना बचाने खातिर नितचुनौती से जूझना होगा।
दहेज़,बलात्कार,भ्रूणऔआत्महत्या शब्दकोश से मिटाना होगा।
गलत प्रथाओं , रुढियों ,झूठे रस्मो-रिवाजों को मिटाना होगा।
सौंदर्य की प्रतिमूर्ती तो हो पर न बनो किसी की कठपुतली तुम।
गलत विज्ञापनों प्रतियोगिताओं,पाश्चात्यता के चोंचलों से बचो तुम।
शाश्वत,सुसंस्कृत अस्मिता औ गौरव अपने में समेटे रहो तुम।
सभी मद, भ्रम,मोह माया स्वार्थों को धूमिल कर दो अब तुम।
अभी तो जीवन पथ नया मिला है सफ़र लम्बा है,
चलते जाना है मीलों दूर----- बहुत दूर-------------,
अग्निशिखा बनके, अंधेरे दूर करके,
घिरी परछाइयों से बाहर निकल के,
अपना आन्शियाँ बनाना होगा,अपना रास्ता चुनना होगा,
लगे पग-पग पर बाधा-अढंगा, लेना पड़े चाहे कोई पंगा।
नहीं घबराना , न टकराना न हुलसाना,
अपनी आस्थाओं,अपेक्षाओं को तलाशना,
ये नई सदी है बहिनों--------
अपना रास्ता अपने आप ही बनाना होगा।
अपने इन्द्रधनुष के रंगों को चुनना होगा।
आओ कदम दर कदम बढाओ कुछ करके अब दिखाओ।
मन के संकल्पों को लिया बस अब आगे बढ़ते ही जाओ।
*अलका मधुसूदन पटेल.*