Tuesday, October 9, 2012

अलका मधुसूदन पटेल ,लेखिका+साहित्यकार.


नारी सशक्तिकरण-----

IF YOU WISH TO REACH THE HIGHEST ,BEGIN AT THE LOWEST

*नारी महिमा* -

प्रभु सत्ता की प्रबल शक्ति ,अति मानवता का अतुल विकास.
पूर्ण विश्व की जन्मदायिनी ,विधि संस्कृति का सफल प्रयास.
देवगणों की वन्दनीय नित , हरी की एकमात्र छाया.
नारी की सत्ता इस जग में , नारी की ही है माया.

*आवश्यकता* -

आज की परिस्थितियों में नारी शक्ति को अपनी पहचान बनाने के लिए अपनी विशिष्टता का अहसास करके आत्मबल बढ़ाना होगा. जिसके लिए बचपन से बच्ची के मन में आत्म-विश्वास जाग्रत करना होगा. प्राचीन समय से चली आ रही प्रथाओं और लड़कियों के प्रति समाज में अपनाये जा रहे दोहरे मापदंड-शोषण को कम करने हेतु आवाज उठाना ही होगा. इसके लिए आत्म-निर्भरता की ओर कदम बढ़ाने होंगे. इसके लिए बालिका के अपने परिवार में जन्म लेते ही उसकी शिक्षा -देखरेख में भेदभाव नहीं रखकर समानता लाना होगा. जिस भी विषय में उसकी रूचि हो उसी में पूर्ण शिक्षिता बनने से न केवल उसका आत्म सम्मान वरन उसके परिजनों का सम्मान बढेगा.ज्ञातव्य है जब हमारा आत्मबल जाग्रत होता है तो दुनिया की समस्त शक्तियां छोटी पड़ जाती हैं .नारी-शक्ति को स्वयं इसका अहसास कराना होगा.  यदि एक बालिका का प्रारंभ से सही पालन-पोषण किया जाये तो वह एक पुरुष से कहीं पीछे नहीं है. हाँ प्रकृति प्रदत्त शारीरिक कोमलता उसकी कमजोरी नहीं संसार का अद्भुत वरदान होता है. सदियों से महिलाओं को वैश्विक स्तर में भी समाज के हाशिये पर रखा जाता रहा है. उनका सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक - भावनात्मक तरीके से मजबूरी व मासूमयित का फायदा उठाये जाता रहा है. उनको आधी दुनिया तो बोला जाता है पर उनको हाशिये में रखकर उनके मानव-अधिकारों तक से वंचित रखा जाता रहा है.

मेहनत तो रंग लाती है चट्टान तोडिये ,पावन पसीना ही तो गंगाजल का रूप है.

*चैतन्यता* -

उठी है मन में तरल तरंग ,भरे उत्कर्षित अंग उमंग.
हमीं हैं भारत की ललना ,प्रण जो कभी न टलना.

आज सामाजिक,सांस्कृतिक ,पारिवारिक मूल्यों में निरंतर चेतना बढ़ रही है, परिवेश बदल रहे हैं. वास्तव में समाज में भी कर्तव्यबोध की भावना बढ़ रही है धीरे-धीरे ही सही. महिलाऐं अपने आप को सक्षम बनाकर पुरुष वर्ग के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. अतः अब परिवारों में भी लड़की होने को अभिशाप नहीं मानने वालों की संख्या में वृद्धि निश्चय ही हो रही है. मुख्यतः नव-युवा वर्ग अपनी छाप छोड़ने में सशक्त बना है. समाज के लगभग हर क्षेत्र में बहुत तेजी से महिला शक्ति अपना स्थान बढाती जा रही है. अपनी योग्यता से उसने अपना इतना ऊँचा स्थान बना लिया है. लोग उसका मान करने लगे हैं ,उसके आधीन काम करने से गुरेज नहीं कर सकते क्योंकि अपनी शक्ति पहचान के नारी ने स्वयं को उत्कृष्ट बना लिया है. कह सकते हैं उसकी दुनिया बदल रही है, जिसकी वह स्वयं हक़दार है. संघर्ष करके अपना यह स्थान वह स्वयं बना रही है.

*सामाजिक परिवर्तन* -

हमारी ही मुठ्ठी में है आकाश सारा,जब भी खुलेगी तो चमकेगा तारा.
कभी न ढले वो ही सितारा, दिशा जिससे पहचाने ये संसार सारा.

पुरुष वर्ग के साथ परिवार में अब विशेषकर महिलाओं को भी अपनी पुत्रियों के लिए या बालिका के लिए अपना नजरिया बदलना होगा क्योंकि जीवन की जिन कठिनाइयों से वे बड़ी-पली हैं ,उनको लगता है की उनकी पुत्री को भी वही कष्ट न हो. उनकी खुद की जिंदगी में वे जिस कमी ,भेदभाव,शोषण या ना-इंसाफी का शिकार हुईं हैं ,होती रही हैं. उनकी बेटी - बहू या समाज की हर बच्ची के साथ न हो. इसीलिए वे अपने परिवार में पुत्री के आगमन से निराशा से भर उठतीं हैं . सर्वप्रथम वे भी किसी भेद-भाव-भुलावे से अपने मुक्त रखें. विशेषकर अपने घर में बेटी-बेटे में कोई भेदभाव नहीं करके उनको समान अवसर दें.
सही मानें तो जब परिवार की मुखिया महिला ही अपने परिवार को सही संस्कार व सामाजिक मूल्यों के साथ बचपन से ही बेटी को पूर्ण जागरूक व सशक्त बनाएगी तो सारे परिवार व समाज में अन्य लोग स्वतः ही अपनी बच्ची को साहसी-योग्य बनायेंगे. उसको उसके अंदर की शक्ति को मनोवैज्ञानिक तरीके से बढ़ावा दिया जाये ना कि प्राकृतिक शारीरिक कमजोरी का अहसास कराके उसका मनोबल कम किया जाये.
हर क्षेत्र में जागरूकता की बहुत जरुरत होती है.उच्च से उच्च शिक्षा दें.

“रबिन्द्रनाथ टैगोर” ने कहा है ,

where the mind is without fear & the head is held high ,where knowledge is free .

*पारिवारिक परिवर्तन* -

अपने परिवार से ही शुरुआत करके व्यापक बदलाव करने होंगे. समाज के हर वर्ग के लिए इस समस्या के निदान ढूंढने होंगे. वैसे भी सर्व-विदित है कि एक बेटी दो कुलों को जोड़ने के साथ ,अपने परिवार से दूसरे परिवार में अपने को आत्मसात करने के बाद भी ( अपनी शादी के बाद) जुडी रहती है पूरा ध्यान रखती है. हाँ हमें अपनी बच्चियों को संपूर्ण सशक्त -सफल -अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की पहल उसके जन्म से ही शुरू करनी होगी. जब तक हम स्वयं अपने घर में से ही हमारी बच्चियों का आत्मबल बढ़ाने का ध्यान नहीं रखेगे तो किसी जादुई चमत्कार की आशा दूसरे से नहीं कर सकते. अभी हमें बहुत कुछ करना बाकी है.पहला कदम उठाकर समाज में बदलाव होगा ही. हमारी बेटियों को उनकी शिक्षा के साथ अपनी रक्षा की जानकारी भी देनी ही होगी. ऐसे अनेकों माध्यम हैं कि माँ-बाप घर बैठकर भी अपनी पुत्री के प्रति निश्चिन्त बने रहें. बाहरी दुनिया के उतारों -चढ़ावों के साथ उससे सावधानी व फरेबों से बचने के साधन. अच्छे-बुरे,सही-गलत की पहचान से उसके व्यक्तित्व को संवारने की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभानी होगी.

The future belongs to those who believed in the beauty of their dream .

*हिंसात्मक पहलू* -

इस अँधेरी रात को हरगिज मिटाना है हमें ,इसलिए हर महिला की शक्ति जगाना है हमें.

बाहरी हिंसा व घरेलू हिंसा के साथ समाज में दिनों-दिन बढ़ते हिंसात्मक व्यवहार-बलात्कार से अपनी सुरक्षा व अपने परिवार की सुरक्षा किस तरह की जाये इसकी जानकारी हेतु वृहद उपाय किये जाने होंगे. घरेलू+कामकाजी महिलाओं को अपनी भूमिका सक्षम बनानी होगी ,अपनी बच्चियों को अधिक मूलभूत सुविधा दिलवाने के साथ सतत निगरानी के दायित्व भी निभाने होंगे व उन पर विश्वास करके उनके कर्तव्यों से परिचित कराना होगा ताकि वे किसी गलत लालच या मतिभ्रमित होने से बचें. वे समाज-परिवार व अपनी जिंदगी में सामान्य संतुलन बनाकर निडर होकर अपना जीवन सार्थक सकें. उनके साथ होते अनाचार या ज्यादती को वे खुलकर व अपनी बात कहने में हिचक महसूस ना करें. बालिकाओं की प्रगति व उत्थान के लिए आन्दोलन का प्रारंभ नए तरीके से करना है तो बारम्बार अनेकों अत्याचार व दुर्घटनाओं से हम मात्र विचलित होकर नहीं रहेंगे.

*सशक्तिकरण* -

कंटकों में पथ बनाना सीख लो कठिनाइयों को सरल बनाना सीख लो .
जिंदगी सुखद तुमको लगने लगेगी ,जिंदगी को अच्छा बनाकर देख लो.

आत्म सम्मान से संस्कृति ,धरोहर की रक्षा करके ,सक्षम दृढ संकल्पित होकर नवदीप प्रज्वलित करना है.आज की स्त्रियाँ उच्च स्तरीय उच्चकोटि विराजित हुईं हैं आसमान में उड़ने की कोशिश करें ,पर उनके पैर जमीन पर रहें .झूटे अहम् या घमंड में न आयें. आधुनिक समाज भी जIन चूका है की अब हमारी महिला शक्ति को पिंजरे में बंद रखने का समय जा चूका है. महिला शक्ति एक साथ मिलकर चलें ,इतनी कड़ी मशक्कत से आज वे अपना जो स्थान बना पायीं हैं.  उसमे वे अपनी वैचारिक क्षमता बढाकर  चारित्रिक बल मर्यादा,सीमा ,गरिमा का गौरव सदैव बनाये रखें.

श्रंखलाएं हों पगों में,गीत गति में है सृजन का ,

है कहाँ फुर्सत पलक को ,नीर बरसाते नयन का,

उठो आगे बढ़ो ,ये समय है कुछ कर दिखाने का.

The first step forward ,solving a problem is to begin .

*जयहिंद-जय महिला-शक्ति*.

अलका मधुसूदन पटेल ,लेखिका+साहित्यकार.