Monday, March 9, 2009


*अपना रास्ता बनाना होगा*


बहुत सो चुकीं बहुत रो चुकीं,जागो अब सोने का समय नहीं है।


जगना ही नहीं जगाना होगा , अपना मान स्वयं बढ़ाना होगा।


अपना रास्ता बनाना होगा ----------


इक्कीसवीं शताब्दी की चौखट पर कदम रख दिया है तुमने।


आशा, विश्वास, प्रगति का अग्नि-दीपक जला दिया है तुमने।


सजग सरल,मुदित म्रदुल सपने, कर्मठ स्वस्थ तन लिए हुए।


करों में कोमल सुमन,पुलकित मन नई आकांक्षाएं लिए हुए।


होठों से बरसे नेहराग औ मुठ्ठियों में आसमान समेटे हुए।


भावनाओं की छलकती सरिता,नेत्रों में अथाह-समुद्र लिए हुए।


उठो!आगे बढो!अपनी शक्ति पहचानो,अपने नभ को तोलो।


विराट जगत की स्वामिनी हो तुम,बंद हैं द्वार अब खोलो।


विश्वास करो तुम्हारी आस्था भी लहलहाएगी एक दिन।


आत्म-सम्मान से तुम्हारी जिंदगी जगमगाएगी एक दिन।


संभलो पहिला पग बढ़ाओ ,न झिझको अब एक भी क्षण।


अपनी शक्ति-मेधा की प्रज्वलित कर दो अब नई किरण।


बहुत सो चुकीं बहुत रो चुकीं ,बहुत छली जा चुकी हो तुम।


साजिशों में घिरीं,बंदिशों में बंधी रहीं,होतीं गुमराह रही तुम।


अंत करो इस भेद नीति का, उठाना ही होगा पहिला कदम।


न मिले प्रेम से सत्कार,हक़ छीनने को सजग होजाओ तुम।


अपना झगडा कटु विषमता चाटुकारिता को त्यागना होगा।


अस्तित्व अपना बचाने खातिर नितचुनौती से जूझना होगा।


दहेज़,बलात्कार,भ्रूणऔआत्महत्या शब्दकोश से मिटाना होगा।


गलत प्रथाओं , रुढियों ,झूठे रस्मो-रिवाजों को मिटाना होगा।


सौंदर्य की प्रतिमूर्ती तो हो पर न बनो किसी की कठपुतली तुम।


गलत विज्ञापनों प्रतियोगिताओं,पाश्चात्यता के चोंचलों से बचो तुम।


शाश्वत,सुसंस्कृत अस्मिता औ गौरव अपने में समेटे रहो तुम।


सभी मद, भ्रम,मोह माया स्वार्थों को धूमिल कर दो अब तुम।


अभी तो जीवन पथ नया मिला है सफ़र लम्बा है,


चलते जाना है मीलों दूर----- बहुत दूर-------------,


अग्निशिखा बनके, अंधेरे दूर करके,


घिरी परछाइयों से बाहर निकल के,


अपना आन्शियाँ बनाना होगा,अपना रास्ता चुनना होगा,


लगे पग-पग पर बाधा-अढंगा, लेना पड़े चाहे कोई पंगा।


नहीं घबराना , न टकराना न हुलसाना,


अपनी आस्थाओं,अपेक्षाओं को तलाशना,


ये नई सदी है बहिनों--------


अपना रास्ता अपने आप ही बनाना होगा।


अपने इन्द्रधनुष के रंगों को चुनना होगा।


आओ कदम दर कदम बढाओ कुछ करके अब दिखाओ।


मन के संकल्पों को लिया बस अब आगे बढ़ते ही जाओ।


*अलका मधुसूदन पटेल.*

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