Sunday, July 11, 2010

*गंभीर विचार*
पिछले कुछ दिनों से एक बिना मतलब की छीटाकशी या निरर्थक बातों-लेखन से कुछ लोग न केवल अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं बल्कि अपनी ओर दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ये अनुचित *अति* कर रहे हैं ,जो उचित नहीं है.
यदि हमारी शक्ति अच्छे कार्यों-विचारों की तरफ जाये तो सही होगा.
सार्थक सोच या निरर्थक विचार
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये ,अपना तन शीतल करे, औरों को सुख होए.
अक्सर हर बात या वस्तु के दो पहलू होते हैं. अच्छा-बुरा, गलत-सही ,आनंद-विषाद, सत्य-असत्य, समझदार-नासमझदार, हार-जीत, होशियार- बेवकूफ, जानबूझकर-अनजाने में, इसी तरह और भी बहुत हैं.
बुद्धिजीवी होकर भी कभी गलती हो जाती है और कभी अनजाने में अनचाही भूल कर बैठते हैं .पर जब जान-बूझकर कोई ऐसा काम लगातार किया जाये जो दूसरों के लिए अहितकर हो , वेदना देनेवाला हो, नीचा दिखाने या चिढाने के लिए हो या घरेलू हिंसात्मक(बोली) प्रवृति लिए हो. तो ये सर्वथा वर्जित है.
"सर्वप्रथम ऐसे कुछ गिने-चुने लोगों से सावधान रहें व अपना विवेक न खोएं क्योंकि उनका तो लेखन में या कार्यों में ऐसे कृतित्व से कोई वजन (वेट) ही नहीं है. वे अपने इन कुत्सित व गलत विचारों द्वारा दूसरों को केवल व्यग्र या क्रोधित करने की चेष्टा करते रहते हैं. ताकि उनपर दूसरे मनीषियों-माननीयों का ध्यान जाये. समझ लें ऐसे लोगों के पास वैचारिक शक्ति ही नहीं है कुछ अच्छा बोलने या सोचने की ,ध्यान न ही दें न कोई प्रतिक्रिया कभी भी जाहिर करें.
संभवतः उनको स्वान्तः सुखाय का आनंद मिलता हो ,त्याग कर दीजिये उनके निरर्थक शब्दों को.
कथन कटु हो सकता है पर सत्य है. थोडा सा ज्ञान हासिल करके आजकल बहुतायत लोग बुद्धिमानों की श्रेणी में शामिल होने की चाहत रखते हैं पर जानकारी के अभाव में निरर्थक बातों या कामों से जानबूझकर अपने को बड़ा(ज्यादा महत्वपूर्ण) दिखाने के लिए बिना कुछ सोचे ऐसा करने की कोशिश करते हैं ,शायद वे नहीं जानते कि ये उन्ही के लिए सही नहीं है.
महत्वपूर्ण - उनके पास सार्थक सोच ही नहीं होती वे ऐसा न मानें .हाँ निरर्थक विचार जो उनके मन में भरे पड़े हैं उसका उपयोग न करें .अपना मन-विचार श्रेष्ट कर्मों में लगायें ,तो न केवल उनका लेखन+ब्लॉग बल्कि जीवन भी सार्थक होगा. सभी उनको पढ़ना भी चाहेंगे. स्वयं अपने व अपनों की नज़रों में बहुत ऊँचा उठ पाएंगे. अपनी योग्यता-बौद्धिक क्षमता को सही दिशा में लगाकर निश्चय ही उत्क्रष्ट्ता की ओर बढ़ेंगे व अपनी बुद्धिमत्ता सही स्वरूप में साबित कर सकेंगे.
हमारे भारत की परंपरा-संस्कार ये नहीं सिखाते कि अनर्गल प्रलाप ,गलत-अविवेकपूर्ण *शब्दों- द्रश्यों* का प्रयोग हम किसी के लिए भी न करें या गलत सोचें. किसी भी बात को सही तरह से कहा जा सकता है व उसका असर ज्यादा रहकर महत्वपूर्ण बनता है.
अपनी भाषा व कार्यों में शाब्दिक गरिमा-गौरव बनाये रखकर ही हमें आपस में एक-दूसरे का सम्मान करना सीखना ही होगा.
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये , अपना तन शीतल करे ओरों को सुख होए .
आपसी प्रतिद्वंदिता, एक दूसरे का भेद-भाव या नीचा दिखाने की कोशिश किये बिना क्यों न हम अपना ज्ञान, जानकारी, श्रेष्टता ,अनुभव सहयोग करें+बाटें. ज्ञातव्य है हमारे अधिकतर भाई-बहनें कर भी रहे हैं. परोक्ष-अपरोक्ष रूप में तो हम सब एक दूसरे से वैचारिक-मानसिक रूप में जुड़े हैं. विज्ञान के वरदान से इन्टरनेट बहुत अच्छा माध्यम बन चूका है. कुछ पहले समय तक तो हमें इतना बढ़िया मौका ही नहीं मिलता रहा है कि हम सब अपने विचार -मंतव्य आसानी से बाँट सकें.
संसार के अथाह ज्ञान सागर व मन की गहराई में तो जाने कितना विशाल भंडार -खजाना पड़ा है कि हम उसको सामूहिक समेटने व सामने लाने का प्रयास करें तो भी कम पड़ेगा पर हम सब कितने ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हैं सोच नहींसकते.
कोई भी किसी से कम ज्यादा नहीं है ,आपस में ही होड़ लेने की आवश्यकता नहीं होती ,सभी अपने-अपने क्षेत्र-कार्य में सर्वश्रेष्ट हैं. हाँ एक-दूसरे की कमियों-बुराइयों-पिछड़ी-पिछली बातों पर ध्यान न देकर कुछ प्रशंसनीय प्रयास किया जाना चाहिए जो हमारी ही योग्यता को प्रदर्शित न करे बल्कि दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा बने व हमें उन पर गर्व हो वे इसी के लिए प्रतिबद्ध रहें.
कबीर मन निर्मल भये जैसे गंगा नीर ,पाछे-पाछे हर फिरे कहत कबीर कबीर.
तात्पर्य हम अपना मन-दिमाग निर्मल-सही दिशा में रखें तो लोग स्वयं आपको पढना चाहेंगे.
“--हम सभी लेखकों-लेखिकाओं समूह के लिए हम सभी की ओर से- -“,
अलका मधुसूदन पटेल , *लेखिका -साहित्यकार*

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