Friday, October 2, 2020

 अपना रास्ता बनाना होगा। 


रो चुकीं, 'बहुत' सो चुकीं तुम।

डर चुकीं, छलीं जा चुकीं तुम।


जागो ! अब खोने का,सोने का समय है नहीं । 

दृढ़ बन पहला पग बढ़ाओ मिलेगी नई राह यहीं।

चेतना ही नहीं ,स्वयं को जगाना होगा। 

अपने सम्मान केलिए कदम  बढाना होगा। 


करों में परिश्रम लिए,मन में सूंदर स्वप्न लिए। 

सजग सरल मन ,कर्मठ स्वस्थ तन लिए हुए। 

होठों में सुंदर राग मुट्ठी में, आसमान समेटे हुए।

 भावनाओं की छलकती सरिता नेत्रों में लिए।


 *उठो! बढ़ो*! अपनी शक्ति पहचानो,अपने नभ को तोलो।

 विराट जगत की स्वामिनी हो तुम,बंद हैं कपाट,अब खोलो। 

बहुत सो चुकीं, बहुत रो चुकीं बहुत छलयात्री बन चुकीं तुम। 

बहुत रहीं मौन व्यथित, वेदना त्याग,बनालो नया जीवटतुम! 


साजिशों से घिरीं, बंदिशों में बंधी,रहीं गुमराहगलत राहोंमें। 

अंत करो! इस भेद नीति का, करो मेधा ज्वलंत मशालों में।  

उठाना ही होगा, पहला चरणअपनी आस्था विश्चास से।

बचाने अस्तित्व अपना ,हां जूझना पड़ेगा सामने डर से। 

  

सभी मत, भ्रम, लालच,मोह -माया स्वार्थों को त्यागो तुम। 

अबला नहीं,कर्तव्य व शक्ति कीअपूर्व सामर्थ्य हो तुम। 

परछाइयों से बाहर निकल। अपना आशियाँ बनाना होगा। 

लगेगा पगपग अड़ंगा तुमको उनसे टकराना होगा । 


ना घबराना,हुलसाना आशाएं, अपेक्षाएं,आस्थाऐं तलाशना।

धरा से आकाश तक की यात्रा है तुमको अब करना। 

लो कुछ कर दिखाने का *संकल्प* बनो *अग्निशिखा*! 

बनके प्रचंड देवी दुर्गामां जैसी अंत करो राह के राक्षसों का। 

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अलका मधुसूदन पटेल

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 आस्थाऔं के बीज

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  मेरे पास ढेर से

 आस्थाऔं के बीज हैं

  इन बीजों को

 अपनी मुट्टियों में भर कर

 छिटकते हुये  चलना तुम

 सुनो,,,,

मेरे पास एक तेज़ धारदार

विद्रोह का हंसियाँ भी है

जहाँ कहीं भी तुम्हेंं  दिखाई दे

बारुद की फसल़

दुई और द्वैष की फसल

 अंहकार की फ़सल

जहाँ हो जुल्म बलात्कार

देश द्रोही चाटुकार

इस तेज़धार हँसिया से काट कर 

उस सुनी धरती पर

आस्थाऔं के बीज़ छिड़क देना......

SONIYA

   


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